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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 740
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
आ꣢꣫ त्वेता꣣ नि꣡ षी꣢द꣣ते꣡न्द्र꣢म꣣भि꣡ प्र गा꣢꣯यत । स꣡खा꣢य꣣ स्तो꣡म꣢वाहसः ॥७४०॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । तु । आ । इ꣣त । नि꣢ । सी꣣दत । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣भि꣢ । प्र । गा꣣यत । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । स्तो꣡म꣢꣯वाहसः । स्तो꣡म꣢꣯ । वा꣣हसः ॥७४०॥
स्वर रहित मन्त्र
आ त्वेता नि षीदतेन्द्रमभि प्र गायत । सखाय स्तोमवाहसः ॥७४०॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । तु । आ । इत । नि । सीदत । इन्द्रम् । अभि । प्र । गायत । सखायः । स । खायः । स्तोमवाहसः । स्तोम । वाहसः ॥७४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 740
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - सामुदायिक प्रार्थना
पदार्थ -
मन्त्र का ऋषि ‘मधुच्छन्दा' है । यह अत्यन्त मधुर इच्छाओंवाला है। यह अपने समानख्यान[tendeney]-वाले (सखायः) = मित्रों से कहता है कि (आ) = चारों ओर से (तु) = निश्चयपूर्वक (एत) = आओ। (नि-षीदत) = नम्रतापूर्वक बैठो और प्रभु की शरण में उपस्थित होकर उस (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली प्रभु का अभिप्रगायत=लक्ष्य करके खूब गायन करो । आप सब (स्तोमवाहसः) = स्तुतिसमूह के धारण करनेवाले बनों ।
मिलकर प्रभु का कीर्तन करने से अधिक उत्तम बात और हो ही क्या सकती है ? प्रभु-कीर्तन का मन पर स्वास्थ्यजनक प्रभाव होता ही है । सामुदायिक प्रभु गायन तो सारे वातावरण को बड़ा सुन्दर बना देता है। प्रभु का स्मरण १. व्यसनों से बचाता है, २. अभिमानशून्यता को उत्पन्न करता है, ३. एक पितृत्व के नाते पारस्परिक बन्धुत्व व ऐक्य की भावना को जन्म देता है, ४. एक ऊँचे लक्ष्य को पैदा करता है, ५. और मैं प्रभु - पुत्र हूँ, इस स्मरण से पापों को आत्म-सम्मान से हीन समझता है [below dignity]। इसी सामुदायिक प्रार्थना के लाभ अगले मन्त्र में अधिक विस्तार से कहे गये हैं।
भावार्थ -
हम मिलकर प्रभु का स्तवन करें ।
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