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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 741
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
पु꣣रूत꣡मं꣢ पु꣣रूणा꣡मीशा꣢꣯नं꣣ वा꣡र्या꣢णाम् । इ꣢न्द्र꣣ꣳ सो꣢मे꣣ स꣡चा꣢ सु꣣ते꣢ ॥७४१॥
स्वर सहित पद पाठपु꣣रूत꣡म꣢म् । पु꣣रूणा꣢म् । ई꣡शा꣢꣯नम् । वा꣡र्या꣢꣯णाम् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । सो꣡मे꣢꣯ । स꣡चा꣢꣯ । सु꣣ते꣢ ॥७४१॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम् । इन्द्रꣳ सोमे सचा सुते ॥७४१॥
स्वर रहित पद पाठ
पुरूतमम् । पुरूणाम् । ईशानम् । वार्याणाम् । इन्द्रम् । सोमे । सचा । सुते ॥७४१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 741
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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विषय - इस चमकीले संसार में
पदार्थ -
वे प्रभु ही वास्तव में वार्याणाम् ईशानम्-सब वरणीय वस्तुओं के ईशान हैं। प्रभु के गायक को वार्य वस्तुएँ ही प्राप्त होती हैं, अतः आओ सुतम् - इस उत्पन्न [प्रसव] ऐश्वर्यमय संसार में, जिसमें कि शतश: चमकीले पदार्थ सदा हमें प्रलुब्ध करने में तत्पर हैं, सचा- मिलकर इन्द्रम्-उस पृ पालनपूरणयोः’ धातु से 'पुरु' शब्द बना है। पुरु का अर्थ है–पालन व पूरण करनेवाला। माता-पिता सन्तान का, आचार्य विद्यार्थी का, राजा प्रजा का, ‘विद्वान् अतिथि' गृहस्थों का पालन व पूरण करने में लगे हैं, परन्तु इन सब पुरुषों की तुलना में वे प्रभु पुरूणां पुरूतमम्=पालकों में सर्वोत्तम पालक हैं । उस प्रभु का हम गायन करें । प्रभु का स्तवन करो, जिससे हम सोमे [निमित्त-सप्तमी]=सोम रक्षा कर सकें। न विलास की ओर जाएँगे और न ही सोम का अपव्यय होने देंगे। इस प्रकार मन्त्र में सामुदायिक प्रार्थना के निम्न लाभ गिनाये गये हैं—
१. प्रभु सर्वोत्तम पालन करनेवाले हैं, अत: हम आसुरी वृत्तियों के आक्रमण से सुरक्षित होंगे। २. वे प्रभु वार्य वस्तुओं के ईशान हैं, अतः हम वरणीय ही भोग्य वस्तुओं को प्राप्त करेंगे तथा ३. इस ऐश्वर्यमय चमकते संसार में न उलझते हुए अपने सोम की रक्षा कर सकेंगे। भावार्थ—सामुदायिक प्रार्थना हमें १. प्रलोभनों से बचाए, २. वार्य वस्तुएँ ही प्राप्त कराए तथा ३. सोम की रक्षा के योग्य बनाए ।
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