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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 743
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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यो꣡गे꣣योगे त꣣व꣡स्त꣢रं꣣ वा꣡जे꣢वाजे हवामहे । स꣡खा꣢य꣣ इ꣡न्द्र꣢मू꣣त꣡ये꣢ ॥७४३॥

स्वर सहित पद पाठ

यो꣡गेयो꣢꣯गे । यो꣡गे꣢꣯ । यो꣣गे । तव꣡स्त꣢रम् । वा꣡जे꣢꣯वाजे । वा꣡जे꣢꣯ । वा꣣जे । हवामहे । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ ॥७४३॥


स्वर रहित मन्त्र

योगेयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे । सखाय इन्द्रमूतये ॥७४३॥


स्वर रहित पद पाठ

योगेयोगे । योगे । योगे । तवस्तरम् । वाजेवाजे । वाजे । वाजे । हवामहे । सखायः । स । खायः । इन्द्रम् । ऊतये ॥७४३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 743
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

इस मन्त्र का ऋषि 'शुनः शेप आजीगर्ति' है । 'शुनम्' शब्द सुख का वाचक है, शेप का अर्थ है—बनाना [To make]। एवं, सुख का निर्माण करनेवाला व्यक्ति ‘शुन:शेप' है। जब यह सांसारिक सुख को अपना लक्ष्य बनाता है तब प्रेयमार्ग के साधनों को जुटाने के लिए अन्धाधुन्ध धन कमाता है और (आजीगर्ति) = द्यूतफलक की ओर जानेवाला होता है [अज् गतौ, गर्तम्=द्यूतफलकम्] । इसकी प्रवृत्ति सट्टे के व्यापार व जुए के भिन्न-भिन्न प्रकारों की ओर होती है, परन्तु जब यह अपने जीवन का लक्ष्य सांसारिक सुख के स्थान में ' श्रेयमार्ग' को बनाता है, तब यही शुन: शेप द्यूतफलक को परे फेंकनेवाला [अज् क्षेपणे] आजीगर्ति बन जाता है । वह प्रभु-प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है और जब कभी प्रभु का इसे आभास होता है तब यह अनुभव करता है कि (योगे-योगे) = उस उस सम्पर्क के समय (तवस्तरम्) = वे प्रभु बड़ी शक्ति देनेवाले हैं [तवस् - बल], इसलिए यह कहता है कि (वाजे-वाजे) = जब-जब काम, क्रोध, लोभ आदि से युद्ध का प्रसंग आता है [to wage a war] वज गतौ=to attack तब-तब हे प्रभो! हम आपको ही (हवामहे) = पुकारते हैं

परन्तु हमें आपको पुकारने का अधिकार भी तो तभी प्राप्त होता है, जब (सखायः) = हम आपके समान ख्यानवाले बनते हैं । आप सर्वज्ञ हैं, हम भी तीव्र तपस्या के द्वारा सर्वज्ञकल्प बनने का प्रयत्न करें। जब जीव इस प्रकार अपने ज्ञान को बढ़ाता है तभी इन्द्र का सखा कहलाने का अधिकारी होता है। यह प्रभु से कहता है कि (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यशाली, सब असुरों का संहार करनेवाले आपको (ऊतये) = अपनी रक्षा के लिए पुकारता हूँ । इन कामादि के साथ युद्ध में मेरी विजय आपके बिना असम्भव है। आपके सहाय से ही मैं इनको जीत पाऊँगा, नहीं तो यह काम तो 'मार' है – यह तो मुझे मार ही डालेगा। आप ही कामारि हैं, आप ही मुझे इससे बचाएँगे।

भावार्थ -

प्रभु के सौन्दर्य से मैं अपने को शक्तिशाली बनाऊँ और काम पर विजय पाऊँ ।

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