Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 744
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
अ꣡नु꣢ प्र꣣त्न꣡स्यौक꣢꣯सो हु꣣वे꣡ तु꣢विप्र꣣तिं꣡ नर꣢꣯म् । यं꣢ ते꣣ पू꣡र्वं꣢ पि꣣ता꣢ हु꣣वे꣢ ॥७४४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣नु꣢꣯ । प्र꣣त्न꣡स्य꣢ । ओ꣡क꣢꣯सः । हु꣣वे꣢ । तु꣣विप्रति꣢म् । तु꣣वि । प्रति꣢म् । न꣡र꣢꣯म् । यम् । ते꣣ । पू꣡र्व꣢꣯म् । पि꣣ता꣢ । हु꣣वे꣢ ॥७४४॥
स्वर रहित मन्त्र
अनु प्रत्नस्यौकसो हुवे तुविप्रतिं नरम् । यं ते पूर्वं पिता हुवे ॥७४४॥
स्वर रहित पद पाठ
अनु । प्रत्नस्य । ओकसः । हुवे । तुविप्रतिम् । तुवि । प्रतिम् । नरम् । यम् । ते । पूर्वम् । पिता । हुवे ॥७४४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 744
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
विषय - उसी को पुकारें
पदार्थ -
इस समय हम संसार में भटक रहे हैं । भटकते-भटकते बड़ी देर हो गयी है, अतः घर तो कुछ पुराना-सा हो गया है, परन्तु उस सनातन घर में पहुँचना तो है ही । (प्रत्नस्य ओकसः अनु) = उस सनातन घर का लक्ष्य करके, अर्थात् संसार - यात्रा को पूर्ण करके प्रभु की गोद में पहुँचनेरूप मोक्ष को लक्ष्य करके मैं उस प्रभु को (हुवे) = पुकारता हूँ, जो (तुविप्रतिम्) = महान् पूरण करनेवाले हैं [तुवि=महान्, प्रा= = पूरणे], (नरम्) = जो हमारा पूरण करके निरन्तर हमें आगे और आगे ले जानेवाले हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह सदा प्रभु का आह्वान करे, जिससे उसकी न्यूनताएँ दूर हों और वह आगे बढ़ सके। संसार प्रलोभनों से भरा है, हम इसमें भटक जाते हैं और भटकते ही रहते हैं, घर वापस पहुँचने का ध्यान ही नहीं रहता, अतः मनुष्य को प्रेरणा देते हैं कि हे मनुष्य ! तू उसी प्रभु को पुकार (यम्) = जिसे ते (पिता) = तुम्हारे पिता (पूर्वम्) = तुमसे पहले (हुवे) = पुकारते रहे हैं। अपनी पैतृक संस्कृति को नष्ट क्यों होने देना! पूर्वजों की उत्तम कुल-रीतियों को चलाते चलना ही ठीक है।
भावार्थ -
अपने पूर्वजों के पदचिह्नों पर चलता हुआ मैं प्रभु का स्मरण करूँ और मोक्ष को अपना लक्ष्य बनाऊँ ।
इस भाष्य को एडिट करें