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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 858
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट्
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
5
नृ꣡भि꣢र्येमा꣣णो꣡ ह꣢र्य꣣तो꣡ वि꣢चक्ष꣣णो꣡ राजा꣢꣯ दे꣣वः꣡ स꣢मु꣣꣬द्र्यः꣢꣯ ॥८५८॥
स्वर सहित पद पाठनृ꣡भिः꣢꣯ । ये꣣मानः꣢ । ह꣣र्यतः꣢ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ । रा꣡जा꣢꣯ । दे꣣वः꣢ । स꣣मुद्र्यः꣢ । स꣢म् । उद्र्यः꣢ ॥८५८॥
स्वर रहित मन्त्र
नृभिर्येमाणो हर्यतो विचक्षणो राजा देवः समुद्र्यः ॥८५८॥
स्वर रहित पद पाठ
नृभिः । येमानः । हर्यतः । विचक्षणः । वि । चक्षणः । राजा । देवः । समुद्र्यः । सम् । उद्र्यः ॥८५८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 858
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - उत्तम शिक्षा
पदार्थ -
मनुष्य अपने जीवन में बहुत कुछ वैसा ही बन जाता है जैसा शिक्षक उसे बनाते हैं। ('मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद') = उत्तम माता-पिता व आचार्यवाला पुरुष ही ज्ञानी बनता है । प्रस्तुत मन्त्र में कहा है – (नृभिः) = [नृ नये] नेतृत्व करनेवाले - जीवन - मार्ग में आगे और आगे ले=चलनेवाले माता-पिता व आचार्यों से (येमाणः) = नियमित जीवनवाला बनाया जाता हुआ—१. (हर्यतः) = [हर्य गतिकान्त्योः] यह गतिशील होता है और इसकी गति में कान्ति होती है, [कान्ति इच्छा] यह लक्ष्यस्थान को प्राप्त करने की इच्छा से गतिशील होता है । २. (विचक्षणः) = यह विशेषरूप से प्रत्येक पदार्थ को देखनेवाला होता है, इसके जीवन का एक विशिष्ट दृष्टिकोण बन जाता है । ३. राजा=यह नियमित गतिवाला तथा स्वास्थ्य व ज्ञान की दीप्तिवाला बनता है । ४. . (देवः) = यह दिव्य गुणों को अपने अन्दर बढ़ाता हुआ 'देव' बनता है। ५. (समुद्र्यः) = ‘कामो हि समुद्रः'=इस वाक्य से समुद्र काम है, यह उसमें उत्तम होता है। काम में उत्तम होने का अभिप्राय ‘नियन्त्रित कामवाला होना' है ।
भावार्थ -
जीवन की उन्नति उत्तम शिक्षकों पर ही निर्भर होती है ।