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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 965
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
त्व꣡ꣳ सो꣢म नृ꣣मा꣡द꣢नः꣣ प꣡व꣢स्व चर्षणी꣣धृ꣡तिः꣢ । स꣢स्नि꣣र्यो꣡ अ꣢नु꣣मा꣡द्यः꣢ ॥९६५॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । सो꣣म । नृमा꣡द꣢नः । नृ꣣ । मा꣡द꣢꣯नः । प꣡व꣢꣯स्व । च꣣र्षणीधृ꣡तिः꣢ । च꣣र्षणि । धृ꣡तिः꣢꣯ । स꣡स्निः꣢꣯ । यः । अ꣣नुमा꣡द्यः꣢ । अ꣣नु । मा꣡द्यः꣢꣯ ॥९६५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वꣳ सोम नृमादनः पवस्व चर्षणीधृतिः । सस्निर्यो अनुमाद्यः ॥९६५॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । सोम । नृमादनः । नृ । मादनः । पवस्व । चर्षणीधृतिः । चर्षणि । धृतिः । सस्निः । यः । अनुमाद्यः । अनु । माद्यः ॥९६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 965
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
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विषय - लोगों में उत्साह का संचार
पदार्थ -
हे (सोम) = शान्त विद्वन् ! (त्वम्) = तू १. (नृमादनः) = मनुष्यों को उत्साहित करनेवाला होता है । तू उन्हें आत्मज्ञान देकर आत्मगौरव की भावना से भरता है । तू २. (चर्षणीधृतिः) = मनुष्यों का धारण करनेवाला बनकर (पवस्व) = गतिशील हो । आत्मतृप्त होने से स्वयं तेरे लिए कुछ भी कर्त्तव्य नहीं है तो भी लोकसंग्रह के लिए तू कर्म कर ही । ३. (सस्नि:) = तू अत्यन्त शुद्ध करनेवाला है और ४. तू वह है (य:) = जो (अनुमाद्यः) = सदा लोगों से प्रशंसनीय [Cheers देने योग्य] होता है। इसके पवित्रकारक, उत्साहजनक, उपदेश लोगों को ऐसा प्रभावित करते हैं कि वे इसकी प्रशंसा में उच्च नाद कर उठते हैं।
भावार्थ -
ज्ञानी कर्म करता हुआ लोगों में उत्साह का संचार करे ।
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