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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 966
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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प꣡व꣢स्व वृत्र꣣ह꣡न्त꣢म उ꣣क्थे꣡भि꣢रनु꣣मा꣡द्यः꣢ । शु꣡चिः꣢ पाव꣣को꣡ अद्भु꣢꣯तः ॥९६६॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । वृ꣣त्र꣡हन्त꣢मः । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯मः । उ꣣क्थे꣡भिः꣢ । अ꣣नुमा꣡द्यः꣢ । अ꣣नु । मा꣡द्यः꣢꣯ । शु꣡चिः꣢꣯ । पा꣣व꣢कः । अ꣡द्भु꣢꣯तः । अत् । भुतः ॥९६६॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व वृत्रहन्तम उक्थेभिरनुमाद्यः । शुचिः पावको अद्भुतः ॥९६६॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । वृत्रहन्तमः । वृत्र । हन्तमः । उक्थेभिः । अनुमाद्यः । अनु । माद्यः । शुचिः । पावकः । अद्भुतः । अत् । भुतः ॥९६६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 966
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
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पदार्थ -

प्रभु एक प्रचारक [परिव्राजक] के लिए आदेश देते हैं कि तू १. (वृत्रहन्तम:) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को सर्वाधिक विनष्ट करनेवाला बन । काम को पराजित करके ही तू लोगों को कामविजय का उपदेश दे सकेगा । २. (उक्थेभिः) = स्तोत्रों के द्वारा पवस्व-तू अपने जीवन को पवित्र कर । वासना का पराजय प्रभु-स्मरण से ही होगा। प्रभु के बिना काम का ध्वंस कौन करेगा ? ३. (अनुमाद्यः) = तेरा जीवन ऐसा हो कि लोग तेरे जीवन को देखकर सदा प्रशंसात्मक शब्द ही बोलें । ४. (शुचिः) = तू पवित्र जीवनवाला हो – शुभ गुण तेरे जीवन को दीप्त बनाएँ, ५. (पावकः) = तू अपने सम्पर्क से, प्रेरणा से औरों के जीवन को भी पवित्र बनानेवाला हो । ६. (अद्भुत:) = तेरा जीवन कुछ विलक्षणता व विशेषता को लिये हुए हो [अभूतपूर्व:]। अन्यों जैसा-प्राकृत जीवन होने पर तू औरों पर क्या प्रभाव डाल पाएगा? विशेषतावाला जीवन ही औरों के लिए आदर्श हो सकता है।

भावार्थ -

प्रचारक को वासनाओं से ऊपर, स्तोत्रों से सदा अपने को पवित्र करनेवाला, प्रशंसनीय, पवित्र, पावन व विशिष्ट जीवनवाला होना चाहिए ।

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