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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 967
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
शु꣡चिः꣢ पाव꣣क꣡ उ꣢च्यते꣣ सो꣡मः꣢ सु꣣तः꣡ स मधु꣢꣯मान् । दे꣣वावी꣡र꣢घशꣳस꣣हा꣢ ॥९६७॥
स्वर सहित पद पाठशु꣡चिः꣢꣯ । पा꣣वकः꣢ । उ꣣च्यते । सो꣡मः꣢꣯ । सु꣣तः꣢ । सः । म꣡धु꣢꣯मान् । दे꣣वावीः꣢ । दे꣣व । अवीः꣢ । अ꣣घशꣳसहा꣢ । अ꣣घशꣳस । हा꣢ ॥९६७॥
स्वर रहित मन्त्र
शुचिः पावक उच्यते सोमः सुतः स मधुमान् । देवावीरघशꣳसहा ॥९६७॥
स्वर रहित पद पाठ
शुचिः । पावकः । उच्यते । सोमः । सुतः । सः । मधुमान् । देवावीः । देव । अवीः । अघशꣳसहा । अघशꣳस । हा ॥९६७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 967
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
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विषय - शुचि व पावन कौन ?
पदार्थ -
(शुचिः) = पवित्र व (पावकः) = पवित्र करनेवाला (सः उच्यते) = वह कहलाता है, जो १. (सोमः) = शान्त, सौम्य स्वभाववाला होता है। सोम के रक्षण द्वारा अपने को सोम का पुञ्ज – शक्तिशाली बनाता है। (मधुमान्) = शक्तिशाली होते हुए अत्यन्त मधुर जीवनवाला होता है। उसकी शक्ति लोकहित में ही विनियुक्त होती है, पर-पीड़न में नहीं, ३. (सुतः) = [सु to go ] यह गतिशील होता है[सुतमस्यास्ति]=यज्ञिय जीवनवाला होता है, [सु = to possess power] सोमरक्षा के द्वारा सदा शक्तिशाली बना रहता है । ४. (देवावी:) = यह अपने दिव्य गुणों की सदा रक्षा करता है । ५. (अघशंसहा) = इसका मुख्य कार्य अघों के शंसन को नष्ट करना होता है [अघशंस-हा]। यह पाखण्ड का खण्डन करता है । इसके खण्डन में ‘शक्ति व माधुर्य', टपकते हैं और इस प्रकार यह लोगों के जीवनों को पवित्र करने का प्रयत्न करता है ।
भावार्थ -
हम अपने जीवन को पवित्र [शुचि], शक्तिशाली व शान्त [सोम], माधुर्यमय [मधुमान्] व दिव्यतायुक्त बनाकर पाप का खण्डन करके पवित्रता का प्रसार करें ।