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अथर्ववेद - काण्ड 1/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - सूर्यः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - हृद्रोगकामलाशन सूक्त
परि॑ त्वा॒ रोहि॑तै॒र्वर्णै॑र्दीर्घायु॒त्वाय॑ दध्मसि। यथा॒यम॑र॒पा अस॒दथो॒ अह॑रितो॒ भुव॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । त्चा॒ । रोहि॑तै: । वर्णै॑: । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । द॒ध्म॒सि॒ । यथा॑ । अ॒यम् । अ॒र॒पा: । अस॑त् । अथो॒ इति॑ । अह॑रित: । भुव॑त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि त्वा रोहितैर्वर्णैर्दीर्घायुत्वाय दध्मसि। यथायमरपा असदथो अहरितो भुवत् ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । त्चा । रोहितै: । वर्णै: । दीर्घायुऽत्वाय । दध्मसि । यथा । अयम् । अरपा: । असत् । अथो इति । अहरित: । भुवत् ॥
अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
विषय - रोहित-वर्ण परिधारण
पदार्थ -
१. (त्वा) = तुझे (रोहितैः वर्णे:) सूर्य-किरणों के रोहित वर्णों से (परिदध्मसि) = चारों ओर से धारण करते हैं, जिससे (दीर्घायुत्वाय) = दीर्घायु की प्रासि हो। प्रातः सूर्याभिमुख होकर ध्यान में बैठने से सूर्य रोगकृमियों का नाश करता है, रुधिर में रक्तता बढ़ाता है और इसप्रकार हमारे दीर्घायुष्य का कारण बनता है। २. एक वैद्य एक रोगी को इसीप्रकार सूर्य की रोहित वर्ण की किरणों से घेरने का प्रयत्न करता है, (यथा) = जिससे कि (अयम्) = यह व्यक्ति (अरपा:) = निर्दोष शरीरवाला (असत्) = हो अथो और निश्चय से (अ-हरित:) = पीलेपन के रोग से रहित (भुवत्) = हो। सूर्य की लाल रंग की किरणें रोगी के शरीर को निर्दोष बनाती हैं और उसके रुधिर की कमी को दूर करके उसे पीलिया के रोग से मुक्त करती हैं।
भावार्थ -
सूर्य की रोहित वर्ण की किरणें हमें नीरोग बनाकर दीर्घायुष्य प्राप्त कराएँ ।
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