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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - सूर्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - हृद्रोगकामलाशन सूक्त
    93

    परि॑ त्वा॒ रोहि॑तै॒र्वर्णै॑र्दीर्घायु॒त्वाय॑ दध्मसि। यथा॒यम॑र॒पा अस॒दथो॒ अह॑रितो॒ भुव॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । त्चा॒ । रोहि॑तै: । वर्णै॑: । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । द॒ध्म॒सि॒ । यथा॑ । अ॒यम् । अ॒र॒पा: । अस॑त् । अथो॒ इति॑ । अह॑रित: । भुव॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि त्वा रोहितैर्वर्णैर्दीर्घायुत्वाय दध्मसि। यथायमरपा असदथो अहरितो भुवत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । त्चा । रोहितै: । वर्णै: । दीर्घायुऽत्वाय । दध्मसि । यथा । अयम् । अरपा: । असत् । अथो इति । अहरित: । भुवत् ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोगनाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (रोहितैः) लाल (वर्णैः) रङ्गों के साथ (त्वा) तुझको (दीर्घायुत्वाय) चिरकाल जीवन के लिये (परि) सब प्रकार से (दध्मसि) हम पुष्ट करते हैं। (यथा) जिससे (अयम्) यह (अरपाः) नीरोग (असत्) हो जाये, (अथो) और (अहरितः) पीले वर्ण रहित (भुवत्) रहे ॥२॥

    भावार्थ

    सद्वैद्य और कुटुम्बी लोग रोगी को प्रातः-सायम् वायुसेवन और औषधसेवन कराकर स्वस्थ करें, कि रुधिरसंचार से उसका शरीर रक्तवर्ण हो जाय और ज्वर, पीलिया आदि रोग का पीलापन शरीर से जाता रहे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−त्वा। त्वां रोगिणम्। रोहितैः। म० १। लोहितैः, रक्तैः वर्णैः। म० १। रङ्गैः। रञ्जनैः। दीर्घायुत्वाय। दीर्घ−आयुत्वाय। छन्दसीणः। उ० १।२। इण् गतौ−उण् भावे त्व प्रत्ययः। चिरकालजीवनाय। परिदध्मसि। म० १। सर्वतः पोषयामः। अरपाः। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति−रप लप कथने−असुन्। रपो रिप्रमिति पापनामनी भवतः−निरु० ४।२१। अपापः, नीरुजः, नीरोगः। असत्। अस सत्तायाम्−लेट्। भवेत्। अथो। अथ−उ। तदनन्तरम् एव। अहरितः। हृश्याभ्यामितन्। उ० ३।९३। इति न+हृञ् हरणे−इतन्। पीतवर्णरहितः। भुवत्। भू सत्तायाम्−लेट्। भवेत् ॥

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    विषय

    रोहित-वर्ण परिधारण

    पदार्थ

    १. (त्वा) = तुझे (रोहितैः वर्णे:) सूर्य-किरणों के रोहित वर्णों से (परिदध्मसि) = चारों ओर से धारण करते हैं, जिससे (दीर्घायुत्वाय) = दीर्घायु की प्रासि हो। प्रातः सूर्याभिमुख होकर ध्यान में बैठने से सूर्य रोगकृमियों का नाश करता है, रुधिर में रक्तता बढ़ाता है और इसप्रकार हमारे दीर्घायुष्य का कारण बनता है। २. एक वैद्य एक रोगी को इसीप्रकार सूर्य की रोहित वर्ण की किरणों से घेरने का प्रयत्न करता है, (यथा) = जिससे कि (अयम्) = यह व्यक्ति (अरपा:) = निर्दोष शरीरवाला (असत्) = हो अथो और निश्चय से (अ-हरित:) = पीलेपन के रोग से रहित (भुवत्) = हो। सूर्य की लाल रंग की किरणें रोगी के शरीर को निर्दोष बनाती हैं और उसके रुधिर की कमी को दूर करके उसे पीलिया के रोग से मुक्त करती हैं।

    भावार्थ

    सूर्य की रोहित वर्ण की किरणें हमें नीरोग बनाकर दीर्घायुष्य प्राप्त कराएँ ।

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    भाषार्थ

    (त्वा) तुझे (दीर्घायु१त्वाय) दीर्घ आयु के लिये, (रोहितै:) लाल रश्मियों के (वर्णेः) वर्णों द्वारा ( परिदध्मसि) हम ढाँपते हैं। (यथा) जिस प्रकार कि (अयम् ) यह ( अरपाः) पापजन्य रोग से रहित (असत्) हो, (अथो) तथा (अहरितः) पीलेपन२ से रहित (भुवत्) हो।

    टिप्पणी

    [असत्, भुवत् = दोनों पद लेट् लकार के हैं, अतः दोनों में अडागम हुआ है।] [१. आयु पद "उकारान्त" तथा आयूस "सकाराग्त" दोनों ठीक हैं। २. इस पीलेपन को jaundica कहते हैं। इस रोग में आँखों तथा त्वचा पर पीलापन हो जाता है। पीलापन पित्त की विकृति के कारण होता है। आयुर्वेद में इसे कामला कहते हैं।]

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    विषय

    हृद्रोग और कामला की चिकित्सा।

    भावार्थ

    हे ( हारिद्र ) पाण्डुरोग से पीडित पुरुष ! ( दीर्घायुत्वाय ) दीर्घ आयु प्राप्त कराने के लिये ( त्वा ) तेरे ( परि ) चारों ओर ( रोहितैः ) सूर्य की किरणों से लाल, या रोहित नाम वृक्षों के (वर्णैः) प्रकाशयुक्त आवरणों या रसों से ( दध्मसि ) तुझे रखते, पुष्ट करते हैं । ( यथा ) जिससे ( अयम् ) यह तू रोगी ( अरपाः ) पाप के फलरूप रोग से रहित ( असत् ) होजाय और जिससे तू ( अहरितः ) हारिद्र या पाण्डुरोग से भी मुक्त (भुवत्) होजाय ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः । सूर्यो मन्त्रोक्तो हरिमा हृद्रोगश्च देवता। अनुष्टुप् छन्दः। चतुर्ऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Heart Trouble and Jaundice

    Meaning

    We treat you with foods, pastes and radiations of crimson red so that you may be free from pallor and heart affliction to live a long healthy life.

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    Translation

    With ruddy colours we enclose and surround you for a long life, so that this man may be cured of the disease and become un- yellowed, free from Jaundice (harimanam).

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    Translation

    O' Ye patient of jaundice! We cover you from all sides with the red colours of the Sun rays for your long life, so that you be out of harm and get rid of the Jaundice.

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    Translation

    With ruddy hues we compass three that thou mayest live a lengthened life: so this patient be free from disease, and cast away his jaundice.

    Footnote

    The patient is surrounded with red colored objects in order to combat the yellow which is symptomatic of the disease; should the patient see everything yellow he will not soon get well” Hindu System of Medicine, p. 248.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−त्वा। त्वां रोगिणम्। रोहितैः। म० १। लोहितैः, रक्तैः वर्णैः। म० १। रङ्गैः। रञ्जनैः। दीर्घायुत्वाय। दीर्घ−आयुत्वाय। छन्दसीणः। उ० १।२। इण् गतौ−उण् भावे त्व प्रत्ययः। चिरकालजीवनाय। परिदध्मसि। म० १। सर्वतः पोषयामः। अरपाः। सर्वधातुभ्योऽसुन्। उ० ४।१८९। इति−रप लप कथने−असुन्। रपो रिप्रमिति पापनामनी भवतः−निरु० ४।२१। अपापः, नीरुजः, नीरोगः। असत्। अस सत्तायाम्−लेट्। भवेत्। अथो। अथ−उ। तदनन्तरम् एव। अहरितः। हृश्याभ्यामितन्। उ० ३।९३। इति न+हृञ् हरणे−इतन्। पीतवर्णरहितः। भुवत्। भू सत्तायाम्−लेट्। भवेत् ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (রোহিতৈঃ) লোহিত (বর্ণৈঃ) রঙ্গের সাথে (ত্বা) তোমাকে (দীর্ঘায়ুত্বায়) দীর্ঘ আয়ুর জন্য (পরি) সর্ব প্রকারে (দসি) আমি পুষ্ট করি। (য়থা) যাহাতে (অয়ম্) এই ব্যক্তি (অরপাঃ) নীরোগ (অমৎ) হইয়া যায় (অথো)(অহরিতঃ) পাংশু বর্ণ রহিত (ভবিৎ) থাকে।।

    भावार्थ

    লোহিত বর্ণ দ্বারা তোমাকে দীর্ঘায়ুর জন্য পুষ্ট করি। ইহা দ্বারা তুমি নীরোগ ও পাংশু বর্ণ রহিত হইবে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    পরিত্বা রোহিতৈর্বর্ণৈদীর্ঘায়ুত্বায় দসি। য়থা হ য়মমরপা অসদথো অহরিতো ভুবৎ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ব্রহ্মা। সূর্যঃ, হরিমা, হদ্রোগশ্চ। অনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (রোগনাশোপদেশঃ) রোগনাশের জন্য উপদেশ

    भाषार्थ

    (রোহিতৈঃ) লাল (বর্ণৈঃ) বর্ণের সাথে (ত্বা) তোমাকে (দীর্ঘায়ুত্বায়) চিরকালের জীবনের/দীর্ঘায়ুর জন্য (পরি) সর্ব প্রকারে (দধ্মসি) আমরা পুষ্ট করি। (যথা) যাতে (অয়ম্)(অরপাঃ) নীরোগ (অসৎ) হয়ে যায় (অথো) এবং (অহরিতঃ) হলুদ বর্ণ রহিত (ভুবৎ) থাকে ॥২॥

    भावार्थ

    সদ্বৈদ্য এবং আত্মীয়গণ রোগীকে প্রাতঃ-সায়ং বায়ুসেবন এবং ঔষধসেবন করিয়ে সুস্থ করবে, যাতে রক্ত সঞ্চার দ্বারা রোগীর শরীর রক্তবর্ণ হয়ে যায় এবং জ্বর, পাণ্ডু ইত্যাদি রোগের হলুদাভ শরীর থেকে দূর হতে থাকে ॥২॥

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    भाषार्थ

    (ত্বা) তোমাকে (দীর্ঘায়ু১ত্বায়) দীর্ঘ আয়ুর জন্য, (রোহিতৈঃ) লাল রশ্মির (বর্ণৈঃ) বর্ণ দ্বারা (পরিদধ্মসি) আমি আচ্ছাদিত করি। (যথা) যাতে (অয়ম্) এই (অরপাঃ) পাপজন্য রোগরহিত (অসৎ) হও, (অথো) তথা (অহরিতঃ) হলুদাভ২ রহিত (ভবৎ) হও।

    टिप्पणी

    [অসৎ, ভুবত= দুটি পদ লেট্ লংকার-এর, অতএব দুটোতেই অডাগম হয়েছে।] [১. আয়ু পদ "উকারান্ত" তথা আয়ুস্ "সকারান্ত" দুটোই ঠিক। ২. এই হলুদাভভাবকে jaundice বলে, এই রোগে চোখ ও ত্বকে হলদেটে ভাব আসে। এই হলদেটে ভাব পিত্তের বিকৃতির কারণে হয়। আয়ুর্বেদে একে কামলা বলে।]

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