Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 1

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 1/ मन्त्र 7
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    नील॑मस्यो॒दरं॒लोहि॑तं पृ॒ष्ठम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नील॑म् । अ॒स्य॒ । उ॒दर॑म् । लोहि॑तम् । पृ॒ष्ठम् ॥१.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नीलमस्योदरंलोहितं पृष्ठम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नीलम् । अस्य । उदरम् । लोहितम् । पृष्ठम् ॥१.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 1; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. सब देवों का ईश बनकर (स:) = वह (एकवात्यः अभवत्) = अद्वितीय व्रतमय जीवनवाला हुआ। (सः धनुः आदत्त) = उसने धनुष ग्रहण किया। धनुष कोई और नहीं था। (तत् एव इन्द्रधनु:) = वही इन्द्रधनुष् था। 'प्रणवो धनुः' ओंकाररूप धनुष् को उसने ग्रहण किया। २. (अस्य) = इस धनुष का (उदरं नीलम्) = उदर नीला है और (पृष्ठ लोहितम्) = पृष्ठ लोहित है। 'ओम्' इस धनुष का 'अ' एक सिरा है, 'म्' दूसरा।'अ' विष्णु है, 'म्' शिव व रुद्र है। इसका मध्य "उ'ब्रह्मा है। ३. यह उदर में होनेवाला-मध्य में होनेवाला 'उ' नील है, '[नि+इला]'-निश्चित ज्ञान की वाणी है। इसका अधिष्ठाता ब्रह्मा है। (नीलेन एव) = इसके द्वारा ही (अप्रियं भ्रातृव्यम्) = अप्रीतिकर शत्रु-कामवासना को (प्रोर्णोति) = आच्छादित कर देता है। ज्ञान प्रबल हुआ तो वह काम को नष्ट कर देता है। 'ओम्' इस धनुष का पृष्ठ सिरा 'अ और म्' क्रमशः विष्णु व रुद्र के वाचक होते हुए शक्ति की सूचना देते हैं। लोहित' रुधिर का वाचक है तथा लाल रंग का प्रतिपादन करता है। ये दोनों ही शक्ति के साथ सम्बद्ध हैं। इस (लोहितेन) = शक्ति से (द्विषन्तं विध्यति) = द्वेष करनेवाले को विद्ध करता है-शत्रुओं को जीतता है। 'उ' से अन्त:शत्रुओं की विजय होती है तो 'म्' से बाहाशत्रुओं की। इति ब्रह्मवादिनो बदन्ति-ऐसा ब्रह्मज्ञानी पुरुष कहते हैं।

    भावार्थ -

    व्रतमय जीवनवाला पुरुष 'ओम्' नामक इन्द्रधनुष को अपनाता है। इस धनुष का मध्य 'उ'"ज्ञान की वाणी' [वेद] का वाचक है। इसके द्वारा यह अन्त:शत्रु काम का विजय करता है और इस धनुष के सिरे 'अ' और 'म्' विष्णु व रुद्र के वाचक होते हुए शक्ति के प्रतीक हैं। इनके द्वारा यह बाह्य शत्रुओं को जीतता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top