अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॑ इन्द्रा॒वरु॑णा रा॒तह॑व्या। शमि॑न्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॒ शं योः शं न॒ इन्द्रा॑पू॒षणा॒ वाज॑सातौ ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑। भ॒व॒ता॒म्। अवः॑ऽभिः। शम्। नः॒। इन्द्रा॒वरु॑णा। रा॒तऽह॑व्या। शम्। इन्द्रा॒सोमा॑। सु॑वि॒ताय॑। शम्। योः। शम्। नः॒। इन्द्रा॑पू॒षणा॑। वाज॑ऽसातौ ॥१०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न इन्द्रावरुणा रातहव्या। शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। इन्द्राग्नी इति। भवताम्। अवःऽभिः। शम्। नः। इन्द्रावरुणा। रातऽहव्या। शम्। इन्द्रासोमा। सुविताय। शम्। योः। शम्। नः। इन्द्रापूषणा। वाजऽसातौ ॥१०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
विषय - 'अग्नि, वरुण, सोम व पूषा'
पदार्थ -
१. (न:) = हमारे लिए (इन्द्राग्नी) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला राजा और ज्ञान देकर आगे ले-चलनेवाला ब्राह्मण ये दोनों (अवोभि:) = रक्षणों के द्वारा (शम्) = शान्ति प्राप्त कराएँ । (न:) = हमारे लिए (इन्द्रावरुणा) = शत्रुविद्रायक राजा तथा अव्यवस्थाओं का निवारण करनेवाला क्षत्रियवर्ग (रातहव्या) = [रात हव्यं याभ्याम्] जिनके लिए उचित कर [Tax] दिया गया है, ऐसे होते हुए (शम्) = शान्ति प्राप्त कराएँ। २. इन्द्रासोमा शत्रुविद्रावक राजा तथा सौम्य स्वभाव का श्रमिक वर्ग [Labour] (शम्) = शान्ति प्राप्त कराए तथा (सुविताय) = सब कार्यों के सम्यक् प्रचलन के लिए-ये इन्द्र और सोम (शं यो:) = रोगों का शमन व भयों का यावन [पृथक्करण] करनेवाले हों। (इन्द्रावूषणा) = शत्रविद्रावक राजा तथा 'कृषि, गोरक्षा ब वाणिज्य' के द्वारा सबका पोषण करनेवाले (वैश्य वाजसातौ) = अन्न की प्रासि कराके (नः शम्) = हमारे लिए शान्ति देनेवाले हों।
भावार्थ - राजा तथा राजशक्ति से सहायता-प्रास 'ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र' सब अपने कार्यों को समुचित रूप से करते हुए हमारे लिए शान्ति देनेवाले हों।
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