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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 48

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 48/ मन्त्र 5
    सूक्त - गोपथः देवता - रात्रिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - रात्रि सूक्त

    ये रात्रि॑मनु॒तिष्ठ॑न्ति॒ ये च॑ भू॒तेषु॒ जाग्र॑ति। प॒शून्ये सर्वा॒न्रक्ष॑न्ति॒ ते न॑ आ॒त्मसु॑ जाग्रति॒ ते नः॑ प॒शुषु॑ जाग्रति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। रात्रि॑म्। अ॒नु॒ऽतिष्ठ॑न्ति। ये। च॒। भू॒तेषु॑। जाग्र॑ति। प॒शून्। ये। सर्वा॑न्। रक्ष॑न्ति। ते। नः॒। आ॒त्मऽसु॑। जा॒ग्र॒ति॒। ते। नः॒। प॒शुषु॑। जा॒ग्र॒ति॒ ॥४८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये रात्रिमनुतिष्ठन्ति ये च भूतेषु जाग्रति। पशून्ये सर्वान्रक्षन्ति ते न आत्मसु जाग्रति ते नः पशुषु जाग्रति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। रात्रिम्। अनुऽतिष्ठन्ति। ये। च। भूतेषु। जाग्रति। पशून्। ये। सर्वान्। रक्षन्ति। ते। नः। आत्मऽसु। जाग्रति। ते। नः। पशुषु। जाग्रति ॥४८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 48; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    १. (ये) = जो (रात्रिम्) = सारी रात (अनुतिष्ठन्ति) = अर्चना व जपोपासनारूप कर्म करते हुए रक्षण का कार्य करते हैं (ये च) = और जो (भूतेषु जाग्रति) = प्राणियों के विषय में रक्षणार्थ सावधान होते हैं। (ये) = जो (सर्वान् पशून् रक्षन्ति) = सब पशुओं का रक्षण करते हैं, (ते) = के रक्षक (न:) = हमारे (आत्मस) = शरीरों के विषय में भी जाग्रति जागते हैं-रक्षणार्थ सावधान होते हैं, (ते) = वे (न:) = हमारे (पशषु) = पशुओं के विषय में भी (जाग्रति) = जागते हैं। हमारे पशुओं के रक्षण में भी अप्रमत्त होते हैं।

    भावार्थ - रक्षापुरुषों का यह कर्तव्य है कि अप्रमत्त होकर रात्रि में प्रभु का स्मरण करते हुए रक्षणकार्य में जागरित रहें।

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