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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    सूक्त - विरूपः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१

    उ॒क्षान्ना॑य व॒शान्ना॑य॒ सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑। स्तोमै॑र्विधेमा॒ग्नये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒क्षऽअ॑न्नाय । व॒शाऽअ॑न्नाय । सोम॑ऽपृष्ठाय । वे॒धसे॑ । स्तोमै॑: । वि॒धे॒म॒ । अ॒ग्नये॑ ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उक्षान्नाय वशान्नाय सोमपृष्ठाय वेधसे। स्तोमैर्विधेमाग्नये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उक्षऽअन्नाय । वशाऽअन्नाय । सोमऽपृष्ठाय । वेधसे । स्तोमै: । विधेम । अग्नये ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 1; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    १. 'उक्षा'-[उक्ष सेचने]-शब्द वृष्टिजल से सेचन का कारण होने से युलोक [सूर्य] का नाम है तथा 'इयं पृथिवी वै बशा पृश्नि: ' श० १.८.३.१५ । इस शतपथ-वाक्य से वशा पृथिवी का नाम है। हम उस (अग्नये) = अग्नणी प्रभु के लिए (स्तोमैः) = स्तुतिसमूहों से (विधेम) = पूजा करें जोकि (वेधसे) = ज्ञानी हैं। सर्वज्ञ होने से पूर्ण सृष्टि का निर्माण करनेवाले हैं। २. उस प्रभु का पूजन करें जो (उक्षान्नाय वशान्नाय) = सूर्य व पृथिवी के द्वारा हमारे लिए विविध अन्नों को उत्पन्न करते हैं और वस्तुतः हमें इन अन्नों के सेवन को ही प्रेरणा प्राप्त कराते हैं। वे प्रभु (सोमपृष्ठाय) = सोमरूप पृष्ठवाले हैं। सोम ही उनका आधार है। वस्तुतः प्रभु-दर्शन का आधार यह सोम ही बनता है। इस सोम के सुरक्षित होने पर हम उस सोम [प्रभु] को प्राप्त कर पाते हैं।

    भावार्थ - यदि हम सूर्य द्वारा वृष्टि-जल-सेचन से पृथिवी में उत्पन्न होनेवाले अन्नों का ही सेवन करेंगे तो शरीर में सोम का रक्षण करते हुए प्रभु को प्राप्त करने के अधिकारी होंगे।

    सूचना - इस सूक्त के तीन मन्त्रों में सोम-रक्षण के तीन साधनों का संकेत है-[१] प्रभु की उपासना, [२] प्राणायाम [३] पृथिवी से उत्पन्न अन्नों का सेवन [मांस आदि भोजनों को न करना]।

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