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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 121

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 121/ मन्त्र 2
    सूक्त - देवातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१२१

    न त्वावाँ॑ अ॒न्यो दि॒व्यो न पार्थि॑वो॒ न जा॒तो न ज॑निष्यते। अ॑श्वा॒यन्तो॑ मघवन्निन्द्र वा॒जिनो॑ ग॒व्यन्त॑स्त्वा हवामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । त्वाऽवा॑न् । अ॒न्य: । दि॒व्य: । न । पार्थि॑व: । न । जा॒त: । न । ज॒नि॒ष्य॒ते॒ ॥ अ॒श्व॒ऽयन्त॑: । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । वा॒जिन॑: । ग॒व्यन्त॑: । त्वा॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१२१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न त्वावाँ अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते। अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । त्वाऽवान् । अन्य: । दिव्य: । न । पार्थिव: । न । जात: । न । जनिष्यते ॥ अश्वऽयन्त: । मघऽवन् । इन्द्र । वाजिन: । गव्यन्त: । त्वा । हवामहे ॥१२१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 121; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    १. हे इन्द्र-परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! त्वावान्-आपके समान न अन्यः दिव्य: न तो कोई अन्य दिव्य सत्ता, न पार्थिवः न ही पार्थिव सत्ता न जात: न तो पैदा हुई है और न-न ही जनिष्यते-पैदा होगी। आप अद्वितीय हैं। २. हे मघवन्-ऐश्वर्यशालिन् प्रभो! अश्वायन्तः-उत्तम कर्मेन्द्रियों को प्राप्त करने की कामनावाले होते हुए, गव्यन्तः उत्तम ज्ञानेन्द्रियों की कामना करते हुए वाजिनः उत्तम शक्तिवाले होते हुए हम त्वा हवामहे-आपको ही पुकारते हैं। आपका आराधन ही हमें उत्तम इन्द्रियों व शक्ति को प्रास कराएगा।

    भावार्थ - हम प्रात:-सार्य अद्वितीय प्रभु को ही पुकारते हैं। वे हमें उत्तम इन्द्रियों व शक्ति प्राप्त कराएंगे। उत्तम इन्द्रियों व शक्ति को प्राप्त करके ही हम सुखों का निर्माण करनेवाले 'शुन:शेप' बन सकेंगे। यह शुन:शेप ही अगले सूक्त का ऋषि है -

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