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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
सूक्त - शक्तिरथवा वसिष्ठः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - प्रगाथः
सूक्तम् - सूक्त-७९
इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑। शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । क्रतु॑म् । न॒: । आ । भ॒र॒ । पि॒ता । पु॒त्रेभ्य॑: । यथा॑ ॥ शिक्ष॑ । न॒: । अ॒स्मिन् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । याम॑नि । जी॒वा: । ज्योति॑: । अ॒शी॒म॒हि॒ ॥७९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा। शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवा ज्योतिरशीमहि ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । क्रतुम् । न: । आ । भर । पिता । पुत्रेभ्य: । यथा ॥ शिक्ष । न: । अस्मिन् । पुरुऽहूत । यामनि । जीवा: । ज्योति: । अशीमहि ॥७९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
विषय - जीवन-शक्ति व ज्योति
पदार्थ -
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (न:) = हमारे लिए इसप्रकार (क्रतुम्) = प्रज्ञान व शक्ति को (आभर) = प्राप्त कराइए, (यथा) = जैसे पिता (पुत्रेभ्य:) = पिता पुत्रों के लिए प्रास कराता है। हम आपके पुत्र हैं, आप हमारे पिता हैं। आपने ही तो हमें प्रज्ञान व शक्ति प्राप्त करानी है। १. हे पुरुहूत पालक व पूरक पुकारवाले प्रभो! (न:) = हमें (अस्मिन् यामनि) = इस जीवन-मार्ग में शिक्षा-शक्तिशाली बनाइए अथवा शिक्षित कीजिए। (जीवा:) = जीवनशक्ति से परिपूर्ण हुए-हुए हम-सबल होते हुए हम (ज्योतिः अशीमाहि) = ज्ञानज्योति को प्राप्त करें।
भावार्थ - प्रभु-कृपा से हम शक्ति व प्रज्ञान से परिपूर्ण होते हुए सुन्दरता से जीवन-यात्रा को परिपूर्ण करें।
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