Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 79 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
    सूक्त - शक्तिरथवा वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-७९
    67

    इन्द्र॒ क्रतुं॑ न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑। शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वा ज्योति॑रशीमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । क्रतु॑म् । न॒: । आ । भ॒र॒ । पि॒ता । पु॒त्रेभ्य॑: । यथा॑ ॥ शिक्ष॑ । न॒: । अ॒स्मिन् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । याम॑नि । जी॒वा: । ज्योति॑: । अ॒शी॒म॒ह‍ि॒ ॥७९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र क्रतुं न आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा। शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवा ज्योतिरशीमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । क्रतुम् । न: । आ । भर । पिता । पुत्रेभ्य: । यथा ॥ शिक्ष । न: । अस्मिन् । पुरुऽहूत । यामनि । जीवा: । ज्योति: । अशीमह‍ि ॥७९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्यवाले राजन्] तू (नः) हमारे लिये (क्रतुम्) बुद्धि (आ भर) भर दे, (यथा) जैसे (पिता) पिता (पुत्रेभ्यः) पुत्रों [सन्तानों] के लिये। (पुरुहूत) हे बहुत प्रकार बुलाये गये [राजन् !] अस्मिन् इस (यामनि) समय वा मार्ग में (नः) हमें (शिक्ष) शिक्षा दे, [जिससे] (जीवाः) हम जीव लोग (ज्योतिः) प्रकाश को (अशीमहि) पावें ॥१॥

    भावार्थ

    राजा उत्तम-उत्तम विद्यालय, शिल्पालय आदि खोलकर प्रजा का हित करे, जैसे पिता सन्तानों का हित करता है, जिससे लोग अज्ञान के अन्धकार से छूटकर ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त होवें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १ आचुका है-अ० १८।३।६७ ॥ १−अयं मन्त्रो व्याख्यातः- अ० १८।३।६७ ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    Bring us the divine vision, will and intelligence as father does for his children. O lord universally invoked and worshipped, instruct us as a teacher at this present time so that we, ordinary souls, may have the new light of life and living experience of Divinity.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १ आचुका है-अ० १८।३।६७ ॥ १−अयं मन्त्रो व्याख्यातः- अ० १८।३।६७ ॥

    Top