अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - योनिः, गर्भः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
गर्भं॑ धेहि सिनीवालि॒ गर्भं॑ धेहि सरस्वति। गर्भं॑ ते अ॒श्विनो॒भा ध॑त्तां॒ पुष्क॑रस्रजा ॥
स्वर सहित पद पाठगर्भ॑म् । धे॒हि॒ । सि॒नी॒वा॒लि॒ । गर्भ॑म् । धे॒हि॒ । स॒र॒स्व॒ति॒। गर्भ॑म् । ते॒ । अ॒श्विना॑ । उ॒भा । आ । ध॒त्ता॒म् । पुष्क॑रऽस्रजा ॥२५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
गर्भं धेहि सिनीवालि गर्भं धेहि सरस्वति। गर्भं ते अश्विनोभा धत्तां पुष्करस्रजा ॥
स्वर रहित पद पाठगर्भम् । धेहि । सिनीवालि । गर्भम् । धेहि । सरस्वति। गर्भम् । ते । अश्विना । उभा । आ । धत्ताम् । पुष्करऽस्रजा ॥२५.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 3
विषय - सिनीवाली सरस्वती
पदार्थ -
१. पति उत्तर देता है-हे (सिनीवालि) = प्रशस्त अन्नोवाली [सिनम् अन्नम्-नि०११.३१]! तू (गर्भ धेहि) = गर्भ धारण कर । यदि तेरा भोजन प्रशस्त होगा तभी गर्भस्थ बालक का धारण हो सकेगा। तेरे द्वारा खाया गया अन्न ही गर्भस्थ बालक के शरीर व मन के स्वास्थ्य का साधन बनेगा। २. हे (सरस्वति) = ज्ञान की आराधिके! तु (गर्भ धेहि) = गर्भ को धारण कर । तेरी ज्ञान की आराधना गर्भस्थ बालक को भी ज्ञान-रुचिवाला बनाएगी। ३. (उभा) = दोनों (पुष्करस्त्रजा) = पोषण का निर्माण करनेवाले अथवा हृदय-कमल का निर्माण करनेवाले (अश्विना) = प्राणापान ते (गर्भ धत्ताम्) = तेरे गर्भ का धारण करें, अर्थात् तेरे द्वारा किया गया प्राणायाम गर्भस्थ बालक का ठीक से पोषण करेगा और उसके हृदय को विषय-जलों से कमलबत् अलिप्स बनाएगा।
भावार्थ -
बालक के गर्भस्थ होने पर माता द्वारा प्रशस्त अन्न का सेवन बालक को स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मनवाला बनाएगा। माता से की गई ज्ञान की अराधना उसे ज्ञान-रुचिबाला बनाएगी और माता द्वारा किया गया प्राणायाम उसे प्रशस्त हृदय-कमलवाला बनाएगा तथा उसका उचित पोषण करेगा।
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