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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः छन्दः - दैवी जगती सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    अ॒न्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्तरि॑क्षाय । स्वाहा॑ ॥९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्तरिक्षाय स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्तरिक्षाय । स्वाहा ॥९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    २. अन्तरिक्षाय-हृदयान्तरिक्ष की पवित्रता के लिए स्वाहा-आपके प्रति अपना अपर्ण करता हूँ।

    भावार्थ -

    ब्रह्मा वही है जिसने त्रिलोकी का विजय करके अपने को ब्रह्मलोक की प्राप्ति के योग्य बनाया है। तीनों लोकों की उन्नति समानरूप से अपेक्षित है। यही भाव क्रम-विपर्यय से सूचित किया गया है।

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