Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 113

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 113/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - पूषा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पापनाशन सूक्त

    मरी॑चीर्धू॒मान्प्र वि॒शानु॑ पाप्मन्नुदा॒रान्ग॑च्छो॒त वा॑ नीहा॒रान्। न॒दीनां॒ फेनाँ॒ अनु॒ तान्वि न॑श्य भ्रूण॒घ्नि पू॑षन्दुरि॒तानि॑ मृक्ष्व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मरी॑ची: । धू॒मान् ।प्र । वि॒श॒ । अनु॑ । पा॒प्म॒न् । उ॒त्ऽआ॒रान् । ग॒च्छ॒ । उ॒त । वा॒ । नी॒हा॒रान् । न॒दीना॑म् । फेना॑न् । अनु॑ । तान् । वि । न॒श्य॒ । भ्रू॒ण॒ऽघ्नि । पू॒ष॒न् । दु॒:ऽइ॒तानि॑ । मृ॒क्ष्व॒ ॥११३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरीचीर्धूमान्प्र विशानु पाप्मन्नुदारान्गच्छोत वा नीहारान्। नदीनां फेनाँ अनु तान्वि नश्य भ्रूणघ्नि पूषन्दुरितानि मृक्ष्व ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरीची: । धूमान् ।प्र । विश । अनु । पाप्मन् । उत्ऽआरान् । गच्छ । उत । वा । नीहारान् । नदीनाम् । फेनान् । अनु । तान् । वि । नश्य । भ्रूणऽघ्नि । पूषन् । दु:ऽइतानि । मृक्ष्व ॥११३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 113; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. हे (पाप्मन्) = पाप! तू (मरीची:) = सूर्य-किरणों में (अनुप्रविश) = प्रविष्ट हो-उन किरणों के सन्ताप से तू नष्ट हो जा, (धूमान्) = धुएँ में प्रविष्ट हो-धूम की भौति कम्पित होकर दूर चला जा, (उदारान्) = [उत् ऋगती] ऊपर गति करनेवाले उन मेघों में (गच्छ) = चला जा। (उत वा) = अथवा (नीहारान) = कोहरों को प्राप्त हो, कोहरे में विलीन होकर तु अदृष्ट हो जा। २. (नदीनाम) = नदियों के (तान्) = उन (फेनान् अनु) = फेनों [झागों] के पीछे (विनश्य) = तू नष्ट हो जा, अर्थात् हमसे तू दूर चला जा हमारा तुझसे किसी प्रकार का सम्बन्ध न रहे। ३. हे (पूषन्) = पोषक प्रभो! (भ्रूणधि) = गर्भ में ही जिसके सन्तान विनष्ट हो जाते हैं, उस स्त्री में (दुरितानि मूक्ष्च) = दुर्गति के कारणभूत पापों को आप नष्ट कर डालिए। किन्हीं पापों से जनित शरीर-विकारों को दूर करके आप इसे उत्तम सन्तान को जन्म देनेवाला बनाइए।

    भावार्थ -

    पाप हमें छोड़कर कहीं दूर प्रदेश में चला जाए। स्त्री पाप-जनित दोष से रहित होकर उत्तम सन्तान को जन्म दे।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top