Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 43

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 43/ मन्त्र 2
    सूक्त - भृग्वङ्गिरा देवता - मन्युशमनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मन्युशमन सूक्त

    अ॒यं यो भूरि॑मूलः समु॒द्रम॑व॒तिष्ठ॑ति। द॒र्भः पृ॑थि॒व्या उत्थि॑तो मन्यु॒शम॑न उच्यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । य: । भूरि॑ऽमूल: । स॒मु॒द्रम् । अ॒व॒ऽतिष्ठ॑ति । द॒र्भ: । पृ॒थि॒व्या: । उत्थि॑त: । म॒न्यु॒ऽशम॑न: । उ॒च्य॒ते॒ ॥४३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं यो भूरिमूलः समुद्रमवतिष्ठति। दर्भः पृथिव्या उत्थितो मन्युशमन उच्यते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । य: । भूरिऽमूल: । समुद्रम् । अवऽतिष्ठति । दर्भ: । पृथिव्या: । उत्थित: । मन्युऽशमन: । उच्यते ॥४३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 43; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. (अयं य:) = यह जो सामने (भूरिमूल:) = अनेक मूलों से युक्त-भूमि पर फैल जानेवाला (दर्भ:) = दर्भ (समद्रम् अवतिष्ठति) = [समद्रवन्त्यस्मादापः] उदकभूयिष्ट देश को आक्रान्त करके स्थिर होता है। यह (पृथिव्याः उत्थितः) = पृथिवी से उत्पन्न हुआ-हुआ दर्भ (मन्युशमनः उच्यते) = क्रोधविनाश का हेतु कहा जाता है।

    भावार्थ -

    समुद्र के किनारे उत्पन्न हुआ-हुआ यह कुश मन्युशमन कहा गया है। इसका प्रयोग शान्ति देनेवाला है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top