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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 63

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 63/ मन्त्र 2
    सूक्त - द्रुह्वण देवता - यमः छन्दः - अतिजगतीगर्भा सूक्तम् - वर्चोबलप्राप्ति सूक्त

    नमो॑ऽस्तु ते निरृते तिग्मतेजोऽय॒स्मया॒न्वि चृ॑ता बन्धपा॒शान्। य॒मो मह्यं॒ पुन॒रित्त्वां द॑दाति॒ तस्मै॑ य॒माय॒ नमो॑ अस्तु मृ॒त्यवे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । अ॒स्तु॒ । ते॒ । नि॒:᳡ऋ॒ते॒ । ति॒ग्म॒ऽते॒ज॒: । अ॒य॒स्मया॑न् । वि । चृ॒त॒ । ब॒न्ध॒ऽपा॒शान् । य॒म: । मह्य॑म् । पुन॑: । इत् । त्वाम् । द॒दा॒ति॒ । तस्मै॑ । य॒माय॑ । नम॑: । अ॒स्तु॒ । मृ॒त्यवे॑ ॥६३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमोऽस्तु ते निरृते तिग्मतेजोऽयस्मयान्वि चृता बन्धपाशान्। यमो मह्यं पुनरित्त्वां ददाति तस्मै यमाय नमो अस्तु मृत्यवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । अस्तु । ते । नि:ऋते । तिग्मऽतेज: । अयस्मयान् । वि । चृत । बन्धऽपाशान् । यम: । मह्यम् । पुन: । इत् । त्वाम् । ददाति । तस्मै । यमाय । नम: । अस्तु । मृत्यवे ॥६३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 63; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. साधक निर्ऋति-पापदेवता से कहता है कि हे (तिग्मतेजः) = तीक्ष्णतेजवाली निते-पापदेवते! (नमः अस्तु) = हमारा तुझे दूर से ही नमस्कार हो। तूने इन (अयस्मयान्) = लोहे के बने हुए-बड़े दृढ़ (बन्धपाशान्) = बन्धनरज्जुओं को (विचता) = छिन्न कर दिया है-हमसे पृथक् कर दिया है। हे पापदेवते! तेरी बड़ी कृपा है कि तूने हमें बन्धनमुक्त कर दिया है। २. इस बन्धनमुक्त साधक से प्रभु कहते हैं कि पाप-बन्धनों से मुक्त करनेवाला (यम:) = तुम्हारे जीवन को नियमित बनानेवाला आचार्य (त्वाम्) = तुझे (पुनः इत्) = फिर-पाप-बन्धन से मुक्त करके (मां ददाति) = मुझे देता है। (तस्मै) = उस (यमाय) = जीवन को नियमित करनेवाले (मृत्यवे) = द्वितीय नव-जीवन प्राप्त करानेवाले आचार्य के लिए (नमः अस्तु) = तुम्हारा नमस्कार हो-तुम उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम करो।

    भावार्थ -

    हम पाप-देवता को दूर से ही नमस्कार करें। नियन्ता, नव-जीवन देनेवाले आचार्यों का हम आदर करें। वे हमें पाप-बन्धन से मुक्त करके प्रभु के लिए प्राप्त कराते हैं।

     

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