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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 68/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - अदितिः, आपः, प्रजापतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - वपन सूक्त
अदि॑तिः॒ श्मश्रु॑ वप॒त्वाप॑ उन्दन्तु॒ वर्च॑सा। चिकि॑त्सतु प्र॒जाप॑तिर्दीर्घायु॒त्वाय॒ चक्ष॑से ॥
स्वर सहित पद पाठअदि॑ति: । श्मश्रु॑। व॒प॒तु॒ । आप॑: । उ॒न्द॒न्तु॒ । वर्च॑सा । चिकि॑त्सतु । प्र॒जाऽप॑ति: । दी॒र्घा॒यु॒ऽत्वाय॑ । चक्ष॑से ॥६८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अदितिः श्मश्रु वपत्वाप उन्दन्तु वर्चसा। चिकित्सतु प्रजापतिर्दीर्घायुत्वाय चक्षसे ॥
स्वर रहित पद पाठअदिति: । श्मश्रु। वपतु । आप: । उन्दन्तु । वर्चसा । चिकित्सतु । प्रजाऽपति: । दीर्घायुऽत्वाय । चक्षसे ॥६८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 68; मन्त्र » 2
विषय - स्वास्थ्य, वीर्य, उत्तम राजप्रबन्ध
पदार्थ -
१. (अदिति:) = स्वास्थ्य का (अखण्डन श्मश्रु) = [श्मनि श्रितम्] शरीरस्थ प्रत्येक रोग को (वपतु) = उच्छिन्न कर दे। (आपः) = शरीरस्थ रेत:कण (वर्चसा उन्दन्तु) = हमें प्राणशक्ति से क्लिन्न करें। हमारा शरीर वीर्यकणों के रक्षण से प्राणशक्ति से पूर्ण हो ताकि यह रोगों का शिकार न होकर स्वस्थ बना रहे। २. (प्रजापतिः) = प्रजाओं का रक्षक राजा (चिकित्सतु) = राष्ट्र में होनेवाले सब उपद्रवों का अपनय [इलाज] करे, जिससे सब प्रजावर्ग (दीर्घायुत्वाय) = दीर्घजीवी हो तथा (चक्षसे) = ज्ञान-चक्षुओं से युक्त हो सके।
भावार्थ -
स्वास्थ्य की देवता हमारे सब रोगों को उच्छिन्न करे। सुरक्षित रेत:कण हममें प्राणशक्ति का सञ्चार करें। राजा सब उपद्रवों को दूर करे, जिससे सुरक्षित राष्ट्र में सब प्रजाजन दीर्घजीवी व ज्ञानी हों।
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