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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
सूक्तम् - असुरक्षयण सूक्त
येन॑ सो॒मादि॑तिः प॒था मि॒त्रा वा॒ यन्त्य॒द्रुहः॑। तेना॒ नोऽव॒सा ग॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । सो॒म॒ । अदि॑ति: । प॒था । मि॒त्रा: । वा॒ । यन्ति॑ । अ॒द्रुह॑: । तेन॑ । न॒: । अव॑सा । आ । ग॒हि॒ ॥७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
येन सोमादितिः पथा मित्रा वा यन्त्यद्रुहः। तेना नोऽवसा गहि ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । सोम । अदिति: । पथा । मित्रा: । वा । यन्ति । अद्रुह: । तेन । न: । अवसा । आ । गहि ॥७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
विषय - अदितिः, अद्रुहः, मित्राः
पदार्थ -
१.हे (सोम) = शान्त प्रभो! (येन पथा) = जिस मार्ग से (अदिति:) = अदीना देवमाता (वा) = अथवा (अद्रुहः) = द्रोह न करनेवाले (मित्रा:) = आदित्य देव (यन्ति) = गति करते हैं, (तेन) = उसी मार्ग से (न:) = हमें (अवसा) = रक्षण के साथ (आगहि) = प्राप्त होओ। २. (अदिति:) = अदीना देवमाता-स्वास्थ्य की देवता है। स्वस्थ होने पर ही दिव्य गुणों का विकास होता है। ('मित्रा:') = आदित्यों का नाम है ये जीवन देते हैं, किसी का जीवन छीनते नहीं। हमारे जीवन का मार्ग भी यही होना चाहिए।
भावार्थ -
हम स्वस्थ व स्नेही बनकर प्रभु-रक्षा के पात्र बनें।
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