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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 7/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - विश्वे देवाः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - असुरक्षयण सूक्त

    येन॑ देवा॒ असु॑राणा॒मोजां॒स्यवृ॑णीध्वम्। तेना॑ नः॒ शर्म॑ यच्छत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    येन॑ । दे॒वा॒: । असु॑राणाम् । ओजां॑सि । अवृ॑णीध्वम् । तेन॑ । न॒: । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ ॥७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येन देवा असुराणामोजांस्यवृणीध्वम्। तेना नः शर्म यच्छत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    येन । देवा: । असुराणाम् । ओजांसि । अवृणीध्वम् । तेन । न: । शर्म । यच्छत ॥७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 7; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. हे (देवा:) = शत्रु-विजय की कामनावाले साधको। (येन) = जिस मार्ग से तुमने (असुराणा ओजांसि) = असुरों के बलों को-आसुरभावों की प्रचण्ड शक्ति को (अवृणीध्वम्) = रोका है निवारण किया है (तेन) = उसी मार्ग से (न:) = हमारे लिए (शर्म यच्छत) = कल्याण व सुख प्राप्त कराइए।

    भावार्थ -

    हम देवों के मार्ग पर चलते हुए आसुरभावों की शक्ति को रोकें और सुख प्राप्त करें।

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