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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
सूक्त - अथर्वा
देवता - रयिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - धनप्राप्ति प्रार्थना सूक्त
अ॒भि व॑र्धतां॒ पय॑साभि रा॒ष्ट्रेण॑ वर्धताम्। र॒य्या स॒हस्र॑वर्चसे॒मौ स्ता॒मनु॑पक्षितौ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । व॒र्ध॒ता॒म् । पय॑सा । अ॒भि । रा॒ष्ट्रेण॑ । व॒र्ध॒ता॒म् । र॒य्या । स॒हस्र॑ऽवर्चसा । इ॒मौ । स्ता॒म् । अनु॑पऽक्षितौ ॥७८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि वर्धतां पयसाभि राष्ट्रेण वर्धताम्। रय्या सहस्रवर्चसेमौ स्तामनुपक्षितौ ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । वर्धताम् । पयसा । अभि । राष्ट्रेण । वर्धताम् । रय्या । सहस्रऽवर्चसा । इमौ । स्ताम् । अनुपऽक्षितौ ॥७८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 78; मन्त्र » 2
विषय - पयसा, राष्ट्रेन, रय्या
पदार्थ -
१. यह गृहपति (पयसा) = आप्यायन के साधनभूत क्षीर आदि पदार्थों से (अभिवर्धताम्) = वृद्धि को प्राप्त करे। यह (राष्ट्रेण) = ग्राम आदि की समृद्धि से (अभिवर्धताम्) = वृद्धि को प्राप्त करे राष्ट्रोन्नति में अपनी उन्नति समझे। २. (इमौ) = ये दोनों पति-पत्नी (सहस्त्रवर्चसा) = अपरिमित तेजवाले (रय्या) = धन से (अनुपक्षितौ स्ताम्) = अक्षीण हों।
भावार्थ -
गृहस्थ में दूध आदि पुष्टिकारक पदार्थों की कमी न हो, ग्राम आदि सम्पत्ति की कमी न हो तथा तेजस्विता को बढ़ानेवाले धन की कमी न हो।
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