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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 9

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    सूक्त - जमदग्नि देवता - कामात्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - कामात्मा सूक्त

    मम॒ त्वा दो॑षणि॒श्रिषं॑ कृ॒णोमि॑ हृदय॒श्रिष॑म्। यथा॒ मम॒ क्रता॒वसो॒ मम॑ चि॒त्तमु॒पाय॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मम॑ । त्वा॒ । दो॒ष॒णि॒ऽश्रिष॑म् । कृ॒णोमि॑ । हृ॒द॒य॒ऽश्रिष॑म् । यथा॑ । मम॑ । क्रतौ॑ । अस॑: । मम॑ । चि॒त्तम् । उ॒प॒ऽआय॑सि ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मम त्वा दोषणिश्रिषं कृणोमि हृदयश्रिषम्। यथा मम क्रतावसो मम चित्तमुपायसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मम । त्वा । दोषणिऽश्रिषम् । कृणोमि । हृदयऽश्रिषम् । यथा । मम । क्रतौ । अस: । मम । चित्तम् । उपऽआयसि ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 9; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. है पनि! मैं (त्वा) = तुझे (मम दोषणिभिषम्) = मेरी भुजा पर आलिङ्गन करनेवाली (कृणोमि) = करता हूँ और (हृदयभिषम्) = हृदय में आश्रय करनेवाली करता हूँ। मेरी भुजाएँ तेरा आश्रय हों, मेरे हृदय में तू बसी हो। २. मैं इसप्रकार प्रेम से तुझे आकृष्ट करता हूँ (यथा) = जिससे तू (मम क्रती अस:) = मेरे कर्मों व संकल्पों में होती है। तू मेरे लिए ही कर्मों को कर मैं भी तेरे संकल्पों का विषय बनें। मम (चित्तम् उपायसि) = तू मेरे चित्त के अनुकूल चलनेवाली हो।

    भावार्थ -

    पति अपने प्रेम से पत्नी को जीतने का प्रयत्न करे।

     

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