Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 91

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 91/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृग्वङ्गिरा देवता - यक्षमनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्षमनाशन सूक्त

    इ॒मं यव॑मष्टायो॒गैः ष॑ड्यो॒गेभि॑रचर्कृषुः। तेना॑ ते त॒न्वो॒ रपो॑ऽपा॒चीन॒मप॑ व्यये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । यव॑म् । अ॒ष्टा॒ऽयो॒गै: । ष॒ट्ऽयो॒गेभि॑: । अ॒च॒र्कृ॒षु॒: । तेन॑ । ते॒ । त॒न्व᳡: । रप॑:। अ॒पा॒चीन॑म् । अप॑ । व्य॒ये॒ ॥९१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं यवमष्टायोगैः षड्योगेभिरचर्कृषुः। तेना ते तन्वो रपोऽपाचीनमप व्यये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम् । यवम् । अष्टाऽयोगै: । षट्ऽयोगेभि: । अचर्कृषु: । तेन । ते । तन्व: । रप:। अपाचीनम् । अप । व्यये ॥९१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 91; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (इयं यवम्) = इस जौ को (अष्टायोगै:) = आठ जोड़ीवाले बैलों से अथवा (षड्योगेभिः) = छह जोडीवाले बैलों से की जानेवाली कृषि से (अचर्कषुः) = उत्पन्न करते हैं। इसप्रकार की कृषि में बैलों को कम कष्ट होता है। वे प्रसन्नता से कर्षण में सहायक होंगे तो उत्पन्न होनेवाला यव भी अधिक गुणकारी होगा। २. (तेन) = उस यव [जौ] से (ते तन्वः रपः)  तेरे शरीर के रोगबीज को (अपाचीनम् अप व्यये) = निम्न गति से दूर करते हैं। यव मलशोधन करता हुआ रोग को दूर करनेवाला होता है।

    भावार्थ -

    जिस भूमि में बैलों को पीड़ित न करते हुए अन्न उत्पन्न किया जाता है वह जी मलों का शोधन करता हुआ रोगों को दूर करता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top