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अथर्ववेद > काण्ड 9 > सूक्त 6 > पर्यायः 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अतिथिः, विद्या छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या गायत्री सूक्तम् - अतिथि सत्कार

    इ॒ष्टं च॒ वा ए॒ष पू॒र्तं च॑ गृ॒हाणा॑मश्नाति॒ यः पूर्वोऽति॑थेर॒श्नाति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ष्टम् । च॒ । वै । ए॒ष: । पू॒र्तम् । च॒ । गृ॒हाणा॑म् । अ॒श्ना॒ति॒ । य: । पूर्व॑: । अति॑थे: । अ॒श्नाति॑ ॥८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इष्टं च वा एष पूर्तं च गृहाणामश्नाति यः पूर्वोऽतिथेरश्नाति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इष्टम् । च । वै । एष: । पूर्तम् । च । गृहाणाम् । अश्नाति । य: । पूर्व: । अतिथे: । अश्नाति ॥८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6; पर्यायः » 3; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    १. (यः) = जो (अतिथे: पूर्वः अश्नाति) = अतिथि को खिलाने से पूर्व स्वयं खा लेता है, (एषः वै) = यह निश्चय से (गृहाणाम्) = घरों के (इष्टं च पूर्तं च) = यज्ञ व कूप-तड़ाग आदि निर्माणात्मक पूर्त कर्मों को (अश्नाति) = खा जाता है, विनष्ट कर बैठता है। २. (पयः च वै रसं च) = यह घर के दूध व रस को निश्चय से विनष्ट कर देता है। ३. (ऊर्जं च वै स्फातिं च) = यह बल व प्राणशक्ति को तथा घर की समृद्धि को नष्ट कर बैठता है। ४. यह अतिथि से पहले ही खा लेनेवाला गृहस्थ (प्रजां च पशून् च) = सन्तानों व पशुओं को नष्ट कर बैठता है। ५. (कीर्तीम् च यश: च) = यह कीर्ति व यश को नष्ट कर बैठता है और ६. (श्रियं च संविदं च) = श्री [लक्ष्मी] व सौहार्द [सौहार्दभाव] को नष्ट कर देता है।

    भावार्थ -

    अतिथि को खिलाने से पूर्व ही भोजन कर लेनेवाला व्यक्ति घर के 'इष्ट-पूर्त को, दूध व रस को, बल व समृद्धि को, प्रजा और पशुओं को, कीर्ति और यश को तथा श्री और संज्ञान को नष्ट कर बैठता है।

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