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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 39
    ऋषिः - वैखानस ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    पु॒नन्तु॑ मा देवज॒नाः पु॒नन्तु॒ मन॑सा॒ धियः॑। पु॒नन्तु॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ जात॑वेदः पुनी॒हि मा॑॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुनन्तु॑। मा॒। दे॒व॒ज॒ना इति॑ देवऽज॒नाः। पु॒नन्तु॑। मन॑सा। धियः॑। पु॒नन्तु॑। विश्वा॑। भू॒तानि॑। जात॑वेद॒ इति॒ जात॑ऽवेदः। पु॒नी॒हि। मा॒ ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनन्तु। मा। देवजना इति देवऽजनाः। पुनन्तु। मनसा। धियः। पुनन्तु। विश्वा। भूतानि। जातवेद इति जातऽवेदः। पुनीहि। मा॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 39
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( मा ) = मुझे  ( देवजना: ) = परमेश्वर के प्यारे विद्वान् महात्मा सन्त जन जो देव कहलाने योग्य हैं  ( पुनन्तु ) =  पवित्र करें। ( मनसा धियः ) = सोच विचार से किये कर्म  ( पुनन्तु ) = पवित्र करें।  ( विश्वा ) = सब  ( भूतानि ) = प्राणिगण और पृथ्वी जलादि भूत  ( पुनन्तु ) = पवित्र करें।  ( जातवेदः ) = वेदों को संसार में प्रकट करनेवाला अन्तर्यामी प्रभु  ( मा ) = मुझे  ( पुनीहि ) = पवित्र करे । 

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे पतित पावन भगवन्! आपकी कृपा से आपके प्यारे महात्मा सन्तजन, हमें उपदेश देकर पवित्र करें। हमारे विचारपूर्वक किये कर्म भी, हमें पवित्र करें । भगवन्! प्रकृति और इसके कार्य जो चर और अचर भूत हैं, ये सब आपके अधीन हैं, आपकी कृपा से हमें पवित्र होने में ये अनुकूल हैं। आपने हमें सांसारिक और पारमार्थिक सुख देने के लिए, चार वेद प्रकट किये हैं, आप कृपा करें कि, उन वेदों का स्वाध्याय करते हुए, हम सब आपके पुत्र अपने लोक और परलोक को सुधारें । यह तब ही हो सकता है, जब आप हमको पवित्र करें । मलिन हृदय से तो न आपकी भक्ति हो सकती है और न ही वेदों का स्वाध्याय, इसीलिए हमारी बारम्बार ऐसी प्रार्थना है कि, 'जातवेदः पुनीहि मा' ।

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