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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 39
    ऋषिः - वैखानस ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    143

    पु॒नन्तु॑ मा देवज॒नाः पु॒नन्तु॒ मन॑सा॒ धियः॑। पु॒नन्तु॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ जात॑वेदः पुनी॒हि मा॑॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुनन्तु॑। मा॒। दे॒व॒ज॒ना इति॑ देवऽज॒नाः। पु॒नन्तु॑। मन॑सा। धियः॑। पु॒नन्तु॑। विश्वा॑। भू॒तानि॑। जात॑वेद॒ इति॒ जात॑ऽवेदः। पु॒नी॒हि। मा॒ ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पुनन्तु। मा। देवजना इति देवऽजनाः। पुनन्तु। मनसा। धियः। पुनन्तु। विश्वा। भूतानि। जातवेद इति जातऽवेदः। पुनीहि। मा॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 39
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे जातवेदो विद्वन्! यथा देवजना मनसा मा पुनन्तु, मम धियश्च पुनन्तु, मम विश्वा भूतानि मा पुनन्तु, तथा त्वं मा पुनीहि॥३९॥

    पदार्थः

    (पुनन्तु) (मा) (देवजनाः) देवा विद्वांसश्च ते जना धर्मे प्रसिद्धाश्च (पुनन्तु) (मनसा) विज्ञानेन (धियः) बुद्धीः (पुनन्तु) (विश्वा) सर्वाणि (भूतानि) (जातवेदः) जातेषु जनेषु ज्ञानिन् विद्वन् (पुनीहि) (मा) माम्॥३९॥

    भावार्थः

    विदुषां विदुषीणां चेदमेव मुख्यं कृत्यमस्ति यत् पुत्राः पुत्र्यश्च ब्रह्मचर्यसुशिक्षाभ्यां विद्वांसः विदुष्यश्च सुशीलाः सततं सम्पादनीया इति॥३९॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय का अगले मन्त्र में उपदेश किया है॥

    पदार्थ

    हे (जातवेदः) उत्पन्न हुए जनों में ज्ञानी विद्वन्! जैसे (देवजनाः) विद्वान् जन (मनसा) विज्ञान और प्रीति से (मा) मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें और हमारी (धियः) बुद्धियों को (पुनन्तु) पवित्र करें और (विश्वा) सम्पूर्ण (भूतानि) भूत=प्राणिमात्र मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें, वैसे आप (मा) मुझ को (पुनीहि) पवित्र कीजिये॥३९॥

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष और विदुषी स्त्रियों का मुख्य कर्त्तव्य यही है कि जो पुत्र और पुत्रियों को ब्रह्मचर्य और सुशिक्षा से विद्वान् और विदुषी, सुन्दर, शीलयुक्त निरन्तर किया करें॥३९॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = ( मा ) = मुझे  ( देवजना: ) = परमेश्वर के प्यारे विद्वान् महात्मा सन्त जन जो देव कहलाने योग्य हैं  ( पुनन्तु ) =  पवित्र करें। ( मनसा धियः ) = सोच विचार से किये कर्म  ( पुनन्तु ) = पवित्र करें।  ( विश्वा ) = सब  ( भूतानि ) = प्राणिगण और पृथ्वी जलादि भूत  ( पुनन्तु ) = पवित्र करें।  ( जातवेदः ) = वेदों को संसार में प्रकट करनेवाला अन्तर्यामी प्रभु  ( मा ) = मुझे  ( पुनीहि ) = पवित्र करे । 

    भावार्थ

    भावार्थ = हे पतित पावन भगवन्! आपकी कृपा से आपके प्यारे महात्मा सन्तजन, हमें उपदेश देकर पवित्र करें। हमारे विचारपूर्वक किये कर्म भी, हमें पवित्र करें । भगवन्! प्रकृति और इसके कार्य जो चर और अचर भूत हैं, ये सब आपके अधीन हैं, आपकी कृपा से हमें पवित्र होने में ये अनुकूल हैं। आपने हमें सांसारिक और पारमार्थिक सुख देने के लिए, चार वेद प्रकट किये हैं, आप कृपा करें कि, उन वेदों का स्वाध्याय करते हुए, हम सब आपके पुत्र अपने लोक और परलोक को सुधारें । यह तब ही हो सकता है, जब आप हमको पवित्र करें । मलिन हृदय से तो न आपकी भक्ति हो सकती है और न ही वेदों का स्वाध्याय, इसीलिए हमारी बारम्बार ऐसी प्रार्थना है कि, 'जातवेदः पुनीहि मा' ।

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    विषय

    सब विद्वानों का पवित्र करने का कर्तव्य ।

    भावार्थ

    (मा) मुझको (देवजना:) विद्वान्, दानशील, गुरु, सूर्य आदि जन (पुनन्तु ) पवित्र करें। ( मनसा धियः) विचार करे मन, विज्ञान से युक्त, किये कर्म भी मुझे पवित्र करें। (विश्वा) समस्त (भूतानि ) प्राणिगण और पृथिवी, अप, तेज, वायु, आकाश आदि पदार्थ और हे ( जातवेदः ) सविद्वान् और परमेश्वर ! ये सब ( मा पुनन्तु) मुझे पवित्र करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    देवजना विद्वांसः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    सत्सङ्ग

    पदार्थ

    १. हे प्रभो ! (मा) = मुझे (देवजना:) = देवजन-दिव्य वृत्तिवाले लोग (पुनन्तु) = पवित्र करें। गत मन्त्र में कहा था कि 'आरे बाधस्व दुच्छुनाम्' दुष्ट कुत्तों के समान मनुष्यों को हमसे दूर ही नष्ट कीजिए । प्रस्तुत मन्त्र में दुःसंग से विपरीत सत्सङ्ग की प्रार्थना से आरम्भ करते हैं कि देव वृत्तिवाले लोगों के सङ्ग से हमारा जीवन पवित्र बने । २. (मनसा) = विचारपूर्वक किये जानेवाले (धियः) = कर्म (पुनन्तु) हमारे जीवनों को पवित्र करें। वस्तुतः मनुष्य तो है ही वह जो (मत्वा कर्माणि सीव्यति) = विचारपूर्वक कर्म करता है। ऐसे कर्म ही हमारे जीवन को पवित्र करते हैं। अकर्मण्यता सब अपवित्रताओं का कारण है। अविचारपूर्वक किये गये कर्म भी हमारे दुःखों व मानस मालिन्य के कारण बन जाते हैं। ३. (विश्वा भूतानि) = 'पृथिवी, जल, तेज, वायु व आकाश' नामक सब भूत (पुनन्तु) = हमारे जीवन को पवित्र करें। इनसे सिद्ध होनेवाली पवित्रता मेरे शारीरिक स्वास्थ्य का कारण बनेगी । ४. (जातवेदः) = हे सर्वज्ञ प्रभो ! (मा पुनीहि) = आप मेरे जीवन को पवित्र कर दीजिए। हृदयस्थ प्रभु मुझे अपने ज्ञान से दीप्त करके पवित्र कर डालते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - १. देवजन मुझे पवित्र करें। २. विचारपूर्वक किये गये कर्म मुझे पवित्र करें ३. पृथिवी आदि भूत मुझे पवित्र करें ४. सर्वज्ञ प्रभु मुझे पवित्र करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    विद्वान पुरुष व विदुषी स्रियांचे हेच मुख्य कर्तव्य आहे की, मुला-मुलींना ब्रह्मचर्य पालन व उत्तम शिक्षण देऊन विद्वान आणि विदुषी करावे व चारित्रवान बनवावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रातही तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (उपासक कामना करीत आहे) (साधक वा हितैपी मनुष्याची प्रार्थना) हे (जातवेदः) उत्पन्न समस्त जनांमध्ये श्रेष्ठ असलेल्या हे विद्वान महोदय, (देवजनः) समाजातील अन्य विद्वज्जनांनी (मा) मला (मनस्प) पूर्ण ज्ञानाद्वारे तसेच मोठ्या प्रेमाने (पुनन्तु) शुद्ध करावे (अशी माझी कामना आहे) तसेच (विश्वा) (भूतानि) समस्त प्राणिमात्रांनीदेखील मला (पुनन्तु) पवित्र करावे. त्याचप्रमाणे हे जातवेदः श्रेष्ठ विद्वान आपणही (मा) मला (पुनीहि) पवित्र करा (ही माझी प्रार्थना) ॥39॥

    भावार्थ

    भावार्थ - विद्वानपुरूषांचे आणि विदुषी स्त्रियांचे मुख्य कर्तव्य आहे की त्यांनी आपल्या मुला-मुलींना ब्रह्मचर्य-पालन तसेच उत्तम शिक्षण देऊन त्यांना विद्वान-विदुषी आणि शीलवान शीवती करण्यासाठी सतत यत्न करावेत ॥39॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned amongst the born, just as the wise purify me with knowledge and love, and purify our intellect, just as all material things purify me, so shouldst thou purify me.

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    Meaning

    Jataveda, lord of light and knowledge, purify and enlighten me. May all the saints and sages purify me. Purify my intelligence and understanding with divine knowledge and science. May all the living beings, in fact everything of the wide world, lead me to knowledge and purity.

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    Translation

    May the enlightened ones purify me. May the thoughts along with my mind purify me. May all the beings purify me. O omniscient Lord, may you purify me. (1)

    Notes

    Devajanāḥ, देवा:, enlightened ones. Or, देवानुगामिनो जना:, godly persons. Manasa dhiyaḥ, my thoughts along with my mind. Or, my actions along with my thoughts.

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    बंगाली (2)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কেপরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (জাতবেদঃ) উৎপন্ন ব্যক্তি দিগের মধ্যে জ্ঞানী বিদ্বান্ ! যেমন (দেবজনাঃ) বিদ্বান্গণ (মনসা) বিজ্ঞান এবং প্রীতিপূর্বক (মা) আমাকে (পুনান্তু) পবিত্র করুন এবং আমাদের (ধিয়ঃ) বুদ্ধিসমূহকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন এবং (বিশ্বা) সম্পূর্ণ (ভূতানি) ভূত প্রাণিমাত্র আমাকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন সেইরূপ আপনি (মা)আমাকে (পুনীহি) পবিত্র করুন ॥ ৩ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ– বিদ্বান্ পুরুষ এবং বিদুষী স্ত্রীদিগের মুখ্য কর্ত্তব্য এই যে, তাঁহারা পুত্র ও কন্যাদেরকে ব্রহ্মচর্য্য ও সুশিক্ষা দ্বারা বিদ্বান্ বিদুষী সুন্দর শীলযুক্ত নিরন্তর করিতে থাকুন ॥ ৩ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    পু॒নন্তু॑ মা দেবজ॒নাঃ পু॒নন্তু॒ মন॑সা॒ ধিয়ঃ॑ ।
    পু॒নন্তু॒ বিশ্বা॑ ভূ॒তানি॒ জাত॑বেদঃ পুনী॒হি মা॑ ॥ ৩ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পুনন্তু মা দেবজনা ইত্যস্য বৈখানস ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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    পদার্থ

    পুনন্তু মা দেবজনাঃ পুনন্তু মনসা ধিয়ঃ ।

    পুনন্তু বিশ্বা ভূতানি জাতবেদঃ পুনীহি মা।।৪১।।

    (যজু ১৯।৩৯)

    পদার্থঃ (মা) আমাকে (দেবজনাঃ) পরমেশ্বরের প্রিয় বিদ্বান, মহাত্মা সাধুজন-যারা দেব হিসেবে সম্বোধনের যোগ্য, তাঁরা (পুনন্তু) পবিত্র করুন। (মনসা ধিয়ঃ) চিন্তা এবং  বিচারাদি  দ্বারা কৃত কর্মকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন, (বিশ্বা) সকল (ভূতানি) প্রাণিগণকে এবং পৃথিবী-জলাদি ভূতসমূহকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন। (জাতবেদঃ) হে বেদসমূহকে সংসারে প্রকটকারী অন্তর্যামী!  (মা) আমাকে (পুনীহি) পবিত্র করো। 

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে পতিতের রক্ষক ভগবান! তোমার কৃপা দ্বারা তোমার প্রিয় মহাত্মা সাধুজন যেন আমাদের উপদেশ দিয়ে পবিত্র করেন। আমাদের বিচারপূর্বক কৃত কর্মকেও উপদেশ দ্বারা পবিত্র করো। হে ভগবান! প্রকৃতি এবং এর কার্য এই চরাচর জগৎ সব তোমারই  অধীন। তোমার কৃপা দ্বারা আমাদেরকে পবিত্র করতে তারা যেন অনুকূল হয়। তুমি আমাদেরকে সাংসারিক এবং পারমার্থিক সুখ দানের জন্য চার বেদ প্রকট করেছ। কৃপা করো যেন উক্ত বেদসমূহের অধ্যয়ন করে নিজ পুত্র, আপনজন এবং পরজনকে শোধরাতে পারি। এই কর্ম তখনই সম্ভব, যখন তুমি আমাদেরকে পবিত্র করো। মলিন হৃদয় দ্বারা তোমার প্রতি ভক্তিভাব অসম্ভব, অসম্ভব বেদাধ্যয়নও। এজন্য বারবার প্রার্থনা করছি, "জাতবেদঃ পুনীহি মা"।। ৪১।। 

     

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