यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 67
ऋषिः - शङ्ख ऋषिः
देवता - पितरो देवता
छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
141
ये चे॒ह पि॒तरो॒ ये च॒ नेह याँश्च॑ वि॒द्म याँ२ऽउ॑ च॒ न प्र॑वि॒द्म। त्वं वे॑त्थ॒ यति॒ ते जा॑तवेदः स्व॒धाभि॑र्य॒ज्ञꣳ सुकृ॑तं जुषस्व॥६७॥
स्वर सहित पद पाठये। च॒। इ॒ह। पि॒तरः॑। ये। च॒। न। इ॒ह। यान्। च॒। वि॒द्म। यान्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। च॒। न। प्र॒वि॒द्मेति॑ प्रऽवि॒द्म। त्वम्। वे॒त्थ॒। यति॑। ते। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। स्व॒धाभिः॑। य॒ज्ञम्। सुकृ॑त॒मिति॒ सुऽकृ॑तम्। जु॒ष॒स्व॒ ॥६७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये चेह पितरो ये च नेह याँश्च विद्म याँऽउ च न प्रविद्म । त्वँवेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञँ सुकृतञ्जुषस्व ॥
स्वर रहित पद पाठ
ये। च। इह। पितरः। ये। च। न। इह। यान्। च। विद्म। यान्। ऊँऽइत्यूँ। च। न। प्रविद्मेति प्रऽविद्म। त्वम्। वेत्थ। यति। ते। जातवेद इति जातऽवेदः। स्वधाभिः। यज्ञम्। सुकृतमिति सुऽकृतम्। जुषस्व॥६७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे जातवेदः! ये चेह पितरो ये चेह न सन्ति, वयं यांश्च विद्म यांश्च न प्रविद्म, तान् यति यावतस्त्वं वेत्थ, उ ते त्वां विदुस्तत् सेवामयं सुकृतं यज्ञं स्वधाभिर्जुषस्व॥६७॥
पदार्थः
(ये) (च) (इह) (पितरः) (ये) (च) (न) (इह) (यान्) (च) (विद्म) जानीमः (यान्) (उ) वितर्के (च) (न) (प्रविद्म) (त्वम्) (वेत्थ) (यति) या सङ्ख्या येषान्तान् (ते) (जातवेदः) जाता वेदः प्रज्ञा यस्य तत्सम्बुद्धौ। हे विद्वन्! (स्वधाभिः) (यज्ञम्) (सुकृतम्) सुष्ठु कर्माणि क्रियन्ते यस्मिन् (जुषस्व) सेवस्व॥६७॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! ये प्रत्यक्षा वा येऽप्रत्यक्षा विद्वांसोऽध्यापका उपदेशकाश्च सन्ति, तान् सर्वानाहूयाऽन्नादिभिस्सदा सत्कुरुत, येन स्वयं सर्वत्र सत्कृता भवत॥६७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (जातवेदः) नवीन तीक्ष्ण बुद्धि वाले विद्वन्! (ये) जो (इह) यहां (च) ही (पितरः) पिता आदि ज्ञानी लोग हैं (च) और (ये) जो (इह) यहां (न) नहीं हैं (च) और हम (यान्) जिनको (विद्म) जानते (च) और (यान्) जिनको (न, प्रविद्म) नहीं जानते हैं, उन (यति) यावत् पितरों को (त्वम्) आप (वेत्थ) जानते हो (उ) और (ते) वे आप को भी जानते हैं, उनकी सेवारूप (सुकृतम्) पुण्यजनक (यज्ञम्) सत्काररूप व्यवहार को (स्वधाभिः) अन्नादि से (जुषस्व) सेवन करो॥६७॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! जो प्रत्यक्ष वा जो अप्रत्यक्ष विद्वान् अध्यापक और उपदेशक हैं, उन सब को बुला अन्नादि से सदा सत्कार करो, जिससे आप भी सर्वत्र सत्कारयुक्त होओ॥६७॥
विषय
विद्वानों और ऐश्वर्यवान् का पालक पुरुषों के प्रति कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( ये च पितरः ) जो पालक जन, शासक (इह) यहां विद्यमान हैं (ये च) और जो (न इह) यहां नहीं हैं, (यान् च विद्मः) जिनको हम जानते हैं और (यान् उ च न प्रविद्म) जिनको हम नहीं भी जानते हैं, हे (जातवेदः) ऐश्वर्यवन्! हे विद्वन् ! (ते) (यति) जितने भी हों (त्वम् उनको (वेल्थ) जान और (स्वधाभिः) योग्य अन्न आदि देहपोषक सामग्रियों से ( सुकृतम् ) उत्तम रूप से सम्पादित ( यज्ञम् ) प्रजापालन रूप 'यज्ञ' को (जुषस्व ) सेवन कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंखः । पितरः । विराट् पंक्तिः । पंचमः ॥
विषय
स्वदेश व विदेश के विद्वान्
पदार्थ
१. (ये) = जो (च) = भी (इह) = यहाँ, इसी स्थान में (पितर:) = ज्ञानप्रद पितर हैं, (ये च इह न) = और जो यहाँ - इस स्थान में रहनेवाले नहीं हैं। उदाहरणार्थ- हम भारत के हैं, तो हमारे दृष्टिकोण से मन्त्रार्थ होगा, 'जो यहाँ भारत में रहनेवाले विद्वान् हैं, और जो यहाँ से बाहर के विद्वान् हैं, अर्थात् विदेश के विद्वान् हैं। २. (यान् च विद्म) = जिनको हम जानते हैं (यान् उ च न प्रविद्म) = और जिनको हम नहीं जानते हैं। ३. हे (जातवेद:) = उत्पन्न ज्ञानवाले विद्वन्! (ते) = वे (यति) = [यतीन् शुचीन्] पवित्र जीवनवाले हैं ऐसा (त्वम्) = तू (वेत्थ) = जानता है, अर्थात् 'इस देश के हैं या विदेश के हैं' इस बात का कोई महत्त्व नहीं । वे हमारे परिचित हैं या अपरिचित यह बात भी अविचारणीय है। आवश्यक बात तो इतनी ही है कि 'वे पवित्र जीवनवाले हैं या नहीं'। यदि वे पवित्र जीवनवाले हैं तो ज्ञानी विद्वन् ! तू (स्वधाभिः) = आत्मधारण के लिए योग्य अन्नों से (सुकृतं यज्ञम्) = सुसम्पादित सत्कार व्यवहार को [देवपूजात्मक यज्ञ को] (जुषस्व) = सेवन कर, अर्थात् उत्तम अन्नादि से तू उनकी सेवा कर ।
भावार्थ
भावार्थ- हमें विद्वानों का आदर करना चाहिए चाहे वे स्वदेश के हों चाहे विदेश के । चाहे वे हमारे परिचित हों चाहे अपरिचित । इतना जानना पर्याप्त है कि उनका जीवन पवित्र है या नहीं। यदि वे 'यति'- संयत जीवनवाले हैं, तो वे हमारे लिए आदरणीय ही हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विद्वान अध्यापक व उपदेशक असतात त्या सर्वांना आमंत्रण देऊन त्यांचा अन्न इत्यादींनी सत्कार करावा. त्यामुळे तुम्हीही सर्वत्र आदरास पात्र व्हाल.
विषय
पुन्हा तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (जातवेदः) नवीन व तीक्ष्ण बुद्धी असलेल्या विद्वान, (ये) जे (इह) इथे (या नगरीत वा राज्यात) (पितरः) पिता वा पित्यासारखे ज्ञानी लोक आहेत (च) आणि (ये) जे (इह) इथे (नगरीत) (न) नाहीत (दूरच्या प्रदेशात वास्तव्य करतात) (त्यांना सत्कारित करून भोजनादीद्वारे आनंदित कर) (च) आणि (यान्) ज्यांना (ज्या विद्वान पितरांना) (विद्म) आम्ही जाणतो, (च) आणि (यान्) ज्यांना (न, प्रविद्म) जाणत नाहीत (परिचित वा अपरिचित अशा) (यति) सर्व पितरजनांना (त्वम्) तुम्ही (वेत्य) जाणता (नगर वा राज्यातील सर्व विद्वान ज्येष्ठजनांची माहिती आपणांस आहे) (उ) तसेच (ते) ते देखील आपणास ओळखतात, सेवारूप (सुकृतम्) पुण्यकर्म करण्यासाठी आपण (यज्ञम्) सत्काररूप यज्ञ करा. आणि त्या (गावच्या वा दूरच्या, परिचित वा अपरिचित सर्व श्रेष्ठ ज्येष्ठ विद्वानांचा) (स्वधामिः) अन्न आदी देऊन (जुषस्व) सेवा वा सत्कार करा ॥67॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यांनो (गृहस्थजनहो) (समाजात, गनरात वा राज्यात) जे प्रसिद्ध विद्वान अध्यापक आणि उपदेशक आहेत, तसेच जे प्रसिद्ध नाहीत, पण विद्वान अध्यापक उपदेशक आहेत, त्या सर्वांना निमंत्रित करून अन्न आदी देऊन नेहमी सत्कार करीत जा. त्यांच्या सत्कारामुळे तुम्हीदेखील लोकांच्या सत्कारास पात्र व्हाल ॥67॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O sharp witted scholar, thou knowest well the number of fathers who are here and who are absent, whom we know and whom we know not. Thou knowest a large number of them and they know thee. Serve them with food and meritorious reverence.
Meaning
Agni, brilliant and generous power, the seniors who are here, and those who are not here, and those whom we know, and those whom we don’t know, you know them all, how many they are and where they are, since you know everything that is anywhere. Let this yajna of service and adoration be done well. Carry it on with grace and with gifts made in faith and love.
Translation
The elders, who are here, and those, who are not here, those whom we know, and those also whom we do not know, О omniscient Lord, you know how many they are. May you provide this well-performed sacrifice with necessary supplies. (1)
Notes
Ye ceha, ye ca neha yansca vidma, yān u na ca pra vidma, those who are here, those who are not here, those whom we know, and also those whom we do not even know (due to long interval of separation). All are welcome and to be treated with food and drinks.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (জাতবেদঃ) নবীন তীক্ষ্ন বুদ্ধি সম্পন্ন বিদ্বান্! (য়ে) যাহারা (ইহ) এখানে (চ) ই (পিতরঃ) পিতরাদি জ্ঞানীগণ আছেন (চ) এবং (য়ে) যাহারা (ইহ) এখানে (ন) নেই (চ) এবং আমরা (য়ান্) যাহাদেরকে (বিদ্ম) জানি (চ) এবং (য়ান্) যাহাদেরকে (ন, প্রবিদ্ম) জানিনা সেই সব (য়তি) যাবৎ পিতরগণকে (ত্বম্) আপনি (বেত্থ) জানেন (উ) এবং (তে) তাহারা আপনাকেও জানেন, তাহাদের সেবারূপ (সুকৃতম্) পুণ্যজনক (য়জ্ঞম্) সৎকার রূপ ব্যবহারকে (স্বধাভিঃ) অন্নাদি দ্বারা (জুষস্ব) সেবন করুন ॥ ৬৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যাহারা প্রত্যক্ষ বা যাহারা অপ্রত্যক্ষ বিদ্বান্ অধ্যাপক ও উপদেশক, তাহাদের সকলকে ডাকিয়া অন্নাদি দ্বারা সর্বদা সৎকর্ম কর যাহাতে তোমরাও সর্বদা সৎকারযুক্ত হও ॥ ৬৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়ে চে॒হ পি॒তরো॒ য়ে চ॒ নেহ য়াঁশ্চ॑ বি॒দ্ম য়াঁ২ऽউ॑ চ॒ ন প্র॑বি॒দ্ম ।
ত্বং বে॑ত্থ॒ য়তি॒ তে জা॑তবেদঃ স্ব॒ধাভি॑র্য়॒জ্ঞꣳ সুকৃ॑তং জুষস্ব ॥ ৬৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ে চেহেত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতা । স্বরাট্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal