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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 64
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    78

    यम॑ग्ने कव्यवाहन॒ त्वं चि॒न्मन्य॑से र॒यिम्। तन्नो॑ गी॒र्भिः श्र॒वाय्यं॑ देव॒त्रा प॑नया॒ युज॑म्॥६४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम्। अ॒ग्ने॒। क॒व्य॒वा॒ह॒नेति॑ कव्यऽवाहन। त्वम्। चित्। मन्य॑से। र॒यिम्। तम्। नः॒। गी॒र्भिरिति॑ गीः॒ऽभिः। श्र॒वाय्य॑म्। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। प॒न॒य॒। युज॑म् ॥६४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमग्ने कव्यवाहन त्वञ्चिन्मन्यसे रयिम् । तन्नो गीर्भिः श्रवाय्यन्देवत्रा पनया युजम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यम्। अग्ने। कव्यवाहनेति कव्यऽवाहन। त्वम्। चित्। मन्यसे। रयिम्। तम्। नः। गीर्भिरिति गीःऽभिः। श्रवाय्यम्। देवत्रेति देवऽत्रा। पनय। युजम्॥६४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 64
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे कव्यवाहनाऽग्ने! त्वं गीर्भिः श्रवाय्यं देवन्ना युजं यं रयिं मन्यसे तं चिन्नः पनय॥६४॥

    पदार्थः

    (यम्) (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमान विद्वन् (कव्यवाहन) यः कविषु साधूनि वस्तूनि वहति प्रापयति तत्सम्बुद्धौ (त्वम्) (चित्) अपि (मन्यसे) (रयिम्) ऐश्वर्यम् (तम्) (नः) अस्मभ्यम् (गीर्भिः) (श्रवाय्यम्) श्रावयितुमर्हम्। श्रुदक्षि॰ (उणा॰३.९६) इत्यादिना आय्य प्रत्ययः। (देवत्रा) देवेषु विद्वत्सु (पनय) देहि। अत्र अन्येषामपि॰ [अष्टा॰६.३.१३७] इति दीर्घः। (युजम्) योक्तुमर्हम्॥६४॥

    भावार्थः

    पितृभिः पुत्रेभ्यस्सत्पात्रेभ्यश्च प्रशंसनीयं धनं सञ्चेयम्। तेनैतान् विदुषो गृहीत्वा सत्यधर्मोपदेशकान् कारयित्वा विद्याधर्मौ प्रचारणीयौ॥६४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (कव्यवाहन) बुद्धिमानों के समीप उत्तम पदार्थ पहुँचानेहारे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशयुक्त! (त्वम्) आप (गीर्भिः) कोमल वाणियों से (श्रवाय्यम्) सुनाने योग्य (देवत्रा) विद्वानों में (युजम्) युक्त करने योग्य (यम्) जिस (रयिम्) ऐश्वर्य्य को (मन्यसे) जानते हो, (तम्) उसको (चित्) भी (नः) हमारे लिये (पनय) कीजिये॥६४॥

    भावार्थ

    पिता आदि ज्ञानी लोगों को चाहिये कि पुत्रों और सत्पात्रों से प्रशंसित धन का सञ्चय करें, उस धन से उत्तम विद्वानों को ग्रहण कर, उनको सत्यधर्म के उपदेशक बनाके विद्या और धर्म का प्रचार करें और करावें॥६४॥

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    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के समान तेजस्विन् ! अग्रणी नेतः ! राजन् ! हे (कव्यवाहन) विद्वान्, कवि, पुरुषों के देने योग्य ऐश्वर्य वा स्तुत्य गुणों के धारण करने हारे ! ( त्वम् ) तू ( यम् ) जिस ( रयिम् ) ऐश्वर्यवान्, ज्ञानवान को, (गीर्भिः) वाणियों द्वारा ( श्रवाय्यम् ) सुनाने योग्य, प्रशंसनीय, (देवत्रा) देव विद्वानों को (युजम् ) देने योग्य ( चित् ) ही (मन्यसे) मानता है ( तत् ) उसको (नः) हमें (पनया) प्रदान कर ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंखः । अग्निः। विराट् अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    देव-विषयक ज्ञान

    पदार्थ

    १. 'कविषु भवं कव्यम्' क्रन्तदर्शी पुरुषों में होनेवाले ज्ञान को यहाँ 'कव्य' कहा गया है । 'कौति सर्वा विद्या:' जो ज्ञान सब विद्याओं का उपदेश देता है वह, वेदज्ञान ही 'कव्य' है। हे अग्ने ज्ञानाग्नि से दीप्त आचार्य ! (कव्यवाहन) = सब विद्याओं के प्रतिपादक वेदज्ञान को धारण करनेवाले आचार्य ! (त्वम्) = आप (यम् चित् रयिम्) = जिस भी ज्ञानधन को (मन्यसे) = उत्तम समझते हैं, (तत्) = उस (गीर्भिः) = वेदवाणियों से (श्रवाय्यम्) = सुननेयोग्य (देवत्रा) = सब देवों के विषय में दिये गये, अर्थात् जिस ज्ञान में प्रकृत्ति से बने तेतीस देवों का तथा चौतिसवें महादेव का ज्ञान दिया गया है, उस (युजम्) = अन्त में मुझे उससे युक्त करनेवाले ज्ञान को (पनया) = [देहि] दीजिए। २. आचार्य मुझे वह ज्ञान दें जिस ज्ञान को वे मेरे लिए ठीक समझते हैं। मुझे आचार्य कृपा से वह ज्ञान प्राप्त हो, जो वेदवाणियों में प्रभु की ओर से दिया गया है, जो ज्ञान सब देवों का प्रतिपादन करता है और जिस ज्ञान से मैं अपना सम्बन्ध उस प्रभु से बना पाता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ - आचार्यों से प्रकृति के सब देवों का ज्ञान प्राप्त करके, इनमें उस प्रभु की महिमा को देखता हुआ मैं उस प्रभु से अपना सम्बन्ध बना पाऊँ ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    पिता वगैरे ज्ञानी लोकांनी पुत्रांकडून व सत्पात्रांकडून धनाचा संचय करून त्या धनाने उत्तम विद्वानांना सत्य धर्माचे उपदेशक बनवून विद्या व धर्माचा प्रचार करावा व करवावा.

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    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (यः) जो (कव्यवाहनः) विद्वानांना श्रेष्ठ कर्म करण्यासाठी प्रवृत्त करणारा आणि (अग्निः) अग्नीप्रमाणे विद्यांमधे प्रकाशित (प्रसिद्ध वा पारंगत) असलेला तसेच (ऋतावृधः)

    भावार्थ

    missing

    टिप्पणी

    --------------------------64 पूर्ण नाही -----------------------------------

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, brilliant like fire and bestower of nice objects on the wise, grant us the supremacy which thou through praiseworthy eloquence considerest fit to be granted to the learned.

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    Meaning

    Agni, carrier of sumptuous foods and fragrance for the noble people, bless us with that wealth of life which you believe is fit for the use of divinities in nature and humanity, and which is worthy of celebration in the best of words worthy of the best listeners.

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    Translation

    O adorable Lord, conveyer of knowledge, whatever you consider as wealth, may you grant that to us through words worthy of hearing in gatherings of the learned ones. (1)

    Notes

    Kavyavāhana, कविषु साधु इति कव्यं, तद् यो वहति सः कव्यवाहन: , kavya is knowledge; one that conveys it is kavyavāhanaḥ. Also, kavya is the food meant for wise elders or Fathers. Bearer of oblations, called kavya, to a class of manes, is called kavyavāhana. Śravayyam,श्रोतुं योग्यं , worth listening to. Panayā, पनय, देहि, give (to us). Devatra, देवेषु or देवेभ्य:, to the enlightened ones; to godly persons.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (কব্যবাহন) বুদ্ধিমান্দিগের সমীপে উত্তম পদার্থ উপস্থিতকারী (অগ্নে) অগ্নির সমান প্রকাশযুক্ত! (ত্বম্) আপনি (গীর্ভিঃ) কোমল বাণী দ্বারা (শ্রবায়্যম্) শ্রবণ করাইবার যোগ্য (দেবত্রা) বিদ্বান্দিগের মধ্যে (য়ুজম্) যুক্ত করিবার যোগ্য (য়ম্) যে (রয়িম্) ঐশ্বর্য্যকে (মন্যসে) জানো (তম্) তাহাকে (চিৎ)(নঃ) আমাদের জন্য (পনয়) করুন ॥ ৬৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–পিতাদি জ্ঞানী লোকদিগের উচিত যে, পুত্র ও সৎপাত্রগণ হইতে প্রশংসিত ধনের সঞ্চয় করিবে । সেই ধন দ্বারা উত্তম বিদ্বান্গণকে গ্রহণ করিয়া তাহাদেরকে সত্যধর্মের উপদেশক করিয়া বিদ্যা ও ধর্মের প্রচার করিবে ও করাইবে ॥ ৬৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ম॑গ্নে কব্যবাহন॒ ত্বং চি॒ন্মন্য॑সে র॒য়িম্ ।
    তন্নো॑ গী॒র্ভিঃ শ্র॒বায়্যং॑ দেব॒ত্রা প॑নয়া॒ য়ুজ॑ম্ ॥ ৬৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়মগ্ন ইত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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