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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 69
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    105

    अधा॒ यथा॑ नः पि॒तरः॒ परा॑सः प्र॒त्नासो॑ऽअग्नऽऋ॒तमा॑शुषा॒णाः। शुचीद॑य॒न् दीधि॑तिमुक्थ॒शासः॒ क्षामा॑ भि॒न्दन्तो॑ऽअरु॒णीरप॑ व्रन्॥६९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑। यथा॑। नः॒। पि॒तरः॑। परा॑सः। प्र॒त्नासः॑। अ॒ग्ने॒। ऋ॒तम्। आ॒शु॒षा॒णाः। शुचि॑। इत्। अ॒य॒न्। दीधि॑तिम्। उ॒क्थ॒शासः॑। उ॒क्थ॒शास॒ इत्यु॑क्थ॒ऽशसः॑। क्षामा॑। भि॒न्दन्तः॑। अ॒रु॒णीः। अप॑। व्र॒न् ॥६९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा यथा नः पितरः परासः प्रत्नासोऽअग्नऽऋतमाशुषाणाः । शुचीदयन्दीधितिमुक्थशासः क्षामा भिन्दन्तो अरुणीरप व्रन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अध। यथा। नः। पितरः। परासः। प्रत्नासः। अग्ने। ऋतम्। आशुषाणाः। शुचि। इत्। अयन्। दीधितिम्। उक्थशासः। उक्थशास इत्युक्थऽशसः। क्षामा। भिन्दन्तः। अरुणीः। अप। व्रन्॥६९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 69
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने विद्वन्! यथा नः परासः प्रत्नास उक्थशासः शुचि ऋतमाशुषाणाः पितरो दीधितिमरुणीः क्षामा चायन्नधाऽथाविद्यां भिन्दन्त इदावरणान्यपव्रँस्तांस्त्वं तथा सेवस्व॥६९॥

    पदार्थः

    (अध) अथ। अत्र वर्णव्यत्ययेन थस्य धः। (यथा) (नः) अस्माकम् (पितरः) (परासः) प्रकृष्टाः (प्रत्नासः) प्राचीनाः (अग्ने) विद्वन् (ऋतम्) सत्यम्। (आशुषाणाः) प्राप्नुवन्तः (शुचि) पवित्रम् (इत्) एव (अयन्) प्राप्नुवन्ति (दीधितिम्) विद्याप्रकाशम् (उक्थशासः) य उक्थानि वक्तुं योग्यानि वचनानि शंसन्ति (क्षामा) निवासभूमिम्। अत्र विभक्तेर्लुक् (भिन्दन्तः) विदारयन्तः (अरुणीः) सुशीलतया प्रकाशमयाः स्त्रियः (अप) (व्रन्) दूरीकुर्वन्ति॥६९॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। ये जनकादयो विद्यां प्रापय्याऽविद्यां निवर्तयन्ति, तेऽत्र सर्वैस्सत्कर्त्तव्याः सन्तु॥६९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन्! (यथा) जैसे (नः) हमारे (परासः) उत्तम (प्रत्नासः) प्राचीन (उक्थशासः) उत्तम शिक्षा करनेहारे (शुचि) पवित्र (ऋतम्) सत्य को (आशुषाणाः) अच्छे प्रकार प्राप्त हुए (पितरः) पिता आदि ज्ञानी जन (दीधितिम्) विद्या के प्रकाश (अरुणीः) सुशीलता से प्रकाश वाली स्त्रियों और (क्षामा) निवासभूमि को (अयन्) प्राप्त होते हैं, (अध) इस के अनन्तर अविद्या का (भिन्दन्तः) विदारण करते हुए (इत्) ही अन्धकाररूप आवरणों को (अप, व्रन्) दूर करते हैं, उनका तू वैसे सेवन कर॥६९॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो पिता आदि विद्या को प्राप्त कराके अविद्या का निवारण करते हैं, वे इस संसार में सब लोगों से सत्कार करने योग्य हों॥६९॥

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    विषय

    ज्ञानोपदेष्टा, ज्ञानवेत्ता पितरों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् ! (अध) और (यथा) जिस प्रकार (नः) हमारे (परासः) पर, उत्कृष्ट पद को प्राप्त (प्रनासः) पूर्व के ( पितरः ) गुरु जन (शुचि) शुद्ध, पवित्र ( ऋतम् ) सत्य, परम ज्ञान को (आशुषाणाः) प्राप्त हुए और (उक्थशासः) ज्ञानोपदेश करते हुए (क्षामाः भिन्दन्तः) विनाशकारिणी नीच प्रवृत्तियों को भेदते हुए, वा भूमियों पर कृषि करते हुए किसान के समान (दीधितिम् ) पोषक अन्नवत् ज्ञान या आदित्यस्वरूप परमेश्वर को ( अप ब्रन् ) प्राप्त होते हैं; और (अप) सुदूरवर्ती (अरुणी:) प्रकाशमय उच्चकोटि की भूमियों को (व्रन्) प्राप्त होते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंखः । पितरः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    पर प्राण पितर

    पदार्थ

    १. (अध) = अब (यथा) = जैसे (न:) = हमारे (पितर:) = पितर (परासः) = जो उत्कृष्ट हैं-विद्या आदि गुणों से उत्कर्ष को प्राप्त हैं, (प्रत्नासः) = आयुष्य में भी बड़े हैं, (ऋतम् आशुषाणा:) = [यज्ञं व्याप्नुवन्तः] यज्ञादि उत्तमकर्मों में व्याप्त हुए हुए हैं। (शुचि दीधितिं इत् अयन्) = पवित्र ज्ञान की किरणों को जिन्होंने प्राप्त किया है और (उक्थशासः) = [उक्थानि शंसन्ति] कहने के योग्य ज्ञान - वचनों का शंसन करते हैं । २. (क्षामा भिन्दन्तः) = पार्थिव भोगों का विद्रावण करते हुए [क्षामा - पृथिवी, पार्थिव भोग] (अरुणी:) = अविद्या के अन्धकार की नाशक ज्ञानकिरणों को (अपव्रन्) = आच्छादन व आवरणरहित करते हैं। हे (अग्ने) परमात्मन्! आप ऐसा ही करें। आपकी कृपा से ऐसा ही हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम उन ज्ञानी पितरों का सम्पर्क प्राप्त करें जो गुणों से उत्कृष्ट हैं, वयोवृद्ध हैं, यज्ञादि कर्मों में व्याप्त जीवनवाले हैं, पवित्र ज्ञान-किरणों को प्राप्त हैं, उक्थों का शंसन करनेवाले, पार्थिव भोगों से ऊपर उठे हुए तथा ज्ञान की किरणों को अनावृत करनेवाले हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे माता-पिता इत्यादी ज्ञानी लोक विद्या प्राप्त करून अविद्य नष्ट करतात. त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा असेच ते असतात.

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    विषय

    पुन्हा तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्वान, (यथा) जसे (नः) आमच्या (परासः) उत्तम (प्रत्नासः) प्राचीन (उक्थशासः) आणि उत्तम ज्ञान देणाऱ्या (पिता आदी ज्ञानी जनांनी पितरांनी) (शुचि) पवित्र (ऋतम्‌) सत्य (आशुषाणाः) चांगल्याप्रकारे प्राप्त केले, त्या (पितरः) पितरांनी (दीधितम्‌) विद्येचा प्रकाश (अरूणीः) सुशील कीर्तिमती स्त्रियांना आणि (क्षामा) ते राहत असलेल्या प्रदेशाला (अयन्‌) दिले (त्यांच्यापर्यंत पोहचविले) (अध) त्यानंतर (त्या स्त्रियांमधे असलेल्या) अविद्या-अंधकाराचे भेदन करीत (इत्‌) ते पितर अज्ञानान्धकाररूप आवरणाला (अप, व्रन्‌) दूर करतात. (हे शिष्या, वा पुत्रा) तू देखील त्या ज्ञानी पितरांची सेवा कर (त्यांच्या ज्ञानाचा लाभ घे) ॥69॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे (ज्याप्रमाणे पितर ज्ञानी स्त्रियांना मान देतात, त्याप्रमाणे हे पुत्रा, तू देखील त्यांच्याकडून घे. हा उपमा अलंकार) जे पिता आदी वृद्धजन (शिष्यांना व संततीला) विद्या देऊन त्यांच्यातील अविद्या नष्ट करतात, या संसारात सर्व लोक त्यांचा अवश्य सत्कार-सम्मान करतात ॥69॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, just as our noble, ancient elders, givers of sound instructions, pure, devotees of truth, spreading knowledge, acquire well-behaved wives and ground to dwell upon, remove ignorance, and cast away the coverings of darkness, so shouldst thou serve them.

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    Meaning

    And Agni, brilliant scholar, just as our teachers, saints and sages, eminent and ancient, dedicated to the holy Word and serving the cause of universal truth and justice, realized the purity and blaze of that truth, and, breaking through the dark veil of the night opened the flood-gates of the light of dawn, so do you blaze, burn, purge, purify and enlighten the world.

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    Translation

    Thus, О adorable Lord, our virtuous and ancient forefathers, institutors of holy rites based on immortal truths, attained pure light, and reciting sacred hymns and dispersing gloom made purple dawns manifest. (1)

    Notes

    Adhā, अथ, now; then. Parāsaḥ, उत्कृष्टा:, illustrious. Also, in the old days. Pratnāsaḥ, ancient. Āśuṣāṇāḥ,अश्नवाना: व्याप्नुवंत;, per vading Śucidayan, शुचिं निर्मलं अयन् प्राप्ता:, have reached the unblemished. Didhitam, सूर्यरश्मिं रविमण्डलं वा , sun's rays or the orb of the sun. Ukthaśāsah, उक्यानि शस्त्राणि शंसन्ति ये ते, those who sing hymns of praise. Kṣāmā bhindantaḥ, breaking out of earth. Arunih apavran, uncovered the bright red rays.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে (অগ্নে) বিদ্বন্! (যথা) যেমন (নঃ) আমাদের (পরাসঃ) উত্তম (প্রত্নাসঃ) প্রাচীন (উক্থশাসঃ) উত্তম শিক্ষা প্রদানকারী (শুচি) পবিত্র (ঋতম্) সত্যকে (আশুষাণাঃ) উত্তম প্রকার প্রাপ্ত হওয়া (পিতরঃ) পিতাদি জ্ঞানীগণ (দীধিতিম্) বিদ্যার প্রকাশ (অরুণীঃ) সুশীলতা পূর্বক প্রকাশময়ী স্ত্রীগণ এবং (ক্ষামা) নিবাসভূমি কে (অয়ন্) প্রাপ্ত হয় (অধ) ইহার পর অবিদ্যা (ভিন্দন্তঃ) বিদীর্ণ করিয়া (ইৎ) ই অন্ধকার রূপ আবরণকে (অপ, ব্রণ্) দূর করে তাহাদের তুমি সেইরূপ সেবন কর ॥ ৬ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যে পিতা আদি বিদ্যাকে প্রাপ্ত করাইয়া অবিদ্যার নিবারণ করেন তাহারা এই সংসারে সকল লোক হইতে সৎকার পাওয়ার যোগ্য ॥ ৬ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অধা॒ য়থা॑ নঃ পি॒তরঃ॒ পরা॑সঃ প্র॒ত্নাসো॑ऽঅগ্নऽঋ॒তমা॑শুষা॒ণাঃ ।
    শুচীদ॑য়॒ন্ দীধি॑তিমুক্থ॒শাসঃ॒ ক্ষামা॑ ভি॒ন্দন্তো॑ऽঅরু॒ণীরপ॑ ব্রন্ ॥ ৬ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অধেত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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