यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 45
ऋषिः - वैखानस ऋषिः
देवता - पितरो देवताः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
120
ये स॑मा॒नाः सम॑नसः पि॒तरो॑ यम॒राज्ये॑। तेषां॑ लो॒कः स्व॒धा नमो॑ य॒ज्ञो दे॒वेषु॑ कल्पताम्॥४५॥
स्वर सहित पद पाठये। स॒मा॒नाः। सम॑नस॒ इति॒ सऽम॑नसः। पि॒तरः॑। य॒म॒राज्य॒ इति॑ यम॒ऽराज्ये॑। तेषा॑म्। लो॒कः। स्व॒धा। नमः॑। य॒ज्ञः। दे॒वेषु॑। क॒ल्प॒ता॒म् ॥४५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये समानाः समनसः पितरो यमराज्ये । तेषाँलोकः स्वधा नमो यज्ञो देवेषु कल्पताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
ये। समानाः। समनस इति सऽमनसः। पितरः। यमराज्य इति यमऽराज्ये। तेषाम्। लोकः। स्वधा। नमः। यज्ञः। देवेषु। कल्पताम्॥४५॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
कुत्र जनाः सुखं निवसन्तीत्याह॥
अन्वयः
ये समानाः समनसः पितरो यमराज्ये सन्ति, तेषां लोकः स्वधा नमो यज्ञश्च देवेषु कल्पताम्॥४५॥
पदार्थः
(ये) (समानाः) सदृशाः (समनसः) समानं मनो विज्ञानं येषां ते (पितरः) प्रजापालकाः (यमराज्ये) यमस्य सभाधीशस्य राष्ट्रे (तेषाम्) (लोकः) सभादर्शनं वा (स्वधा) अन्नम् (नमः) सत्करणम् (यज्ञः) संगन्तव्यो न्यायः (देवेषु) विद्वत्सु (कल्पताम्) समर्थितोऽस्तु॥४५॥
भावार्थः
यत्र बहुदर्शिनामन्नाद्यैश्वर्युक्तानां सज्जनैः सत्कृतानां धर्मैकनिष्ठानां विदुषां सभा सत्यं न्यायं करोति, तत्रैव सर्वे मनुष्या ऐश्वर्ये सुखे च निवासं कुर्वन्ति॥४५॥
हिन्दी (3)
विषय
कहां मनुष्य सुखपूर्वक निवास करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(ये) जो (समानाः) सदृश (समनसः) तुल्य विज्ञानयुक्त (पितरः) प्रजा के रक्षक लोग (यमराज्ये) यथावत् न्यायकारी सभाधीश राजा के राज्य में हैं, (तेषाम्) उनका (लोकः) सभा का दर्शन (स्वधा) अन्न (नमः) सत्कार और (यज्ञः) प्राप्त होने योग्य न्याय (देवेषु) विद्वानों में (कल्पताम्) समर्थ होवे॥४५॥
भावार्थ
जहां बहुदर्शी अन्नादि ऐश्वर्य से संयुक्त सज्जनों से सत्कार को प्राप्त एक धर्म ही में जिनकी निष्ठा है, उन विद्वानों की सभा सत्यन्याय को करती है, उसी राज्य में सब मनुष्य ऐश्वर्य्य और सुख में निवास करते हैं॥४५॥
विषय
यमराज्य में पितरों की स्वधा का रहस्य ।
भावार्थ
( यमराज्ये) नियन्ता के राज्य में (ये) जो (समानाः) समान मान वाले, ( समनसः ) समान सहयोगी चित्त वाले, (पितरः) राज्य के पालक, अधिकारी जन हैं ( तेषाम् ) उनको ( लोकः ) रहने का निवास स्थान और ( स्वधाः ) भरण पोषण योग्य अन्न, वस्त्र, वेतन और (नमः) सत्कार प्राप्त हो। जिससे (यज्ञः) न्याय, प्रजापालन, सुसंगत राज्यव्यवस्था ( देवेषु ) विद्वानों, शासकों और माण्डलिकों के बीच और भी दृढ़ और उत्तम हो । शत० १२।८।१।१९ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पितरो देवताः । निचृद् अनुष्टुप् । गांधारः ॥
विषय
यमराज्य में
पदार्थ
१. (ये) = जो हमारे (पितरः) = पिता-पितामह प्रपितामह आदि (समाना:) = सुख-दुःख में समानवृत्तिवाले होते हैं, 'नित्यं च समचित्तकं, इष्टानिष्टोपपत्तिषु' = इष्ट-अनिष्ट प्राप्ति में समचित्त रहते हैं। जो शुभाशुभ को प्राप्त करके न तो हर्ष से फूलते हैं और न ही उदास हो जाते हैं। २. (समनस:) = [समानं मनो विज्ञानं येषां ] और समान विज्ञानवाले होते हैं ३. (यमराज्ये) = जो यम के राज्य में निवास करते हैं, अर्थात् जो सदा नियन्त्रित जीवन बिताते हैं। ४. (तेषाम्) = उन्हें (लोक:) = उत्तम लोक व यश की प्राप्ति होती है, (स्वधा) = उन्हें आत्मधारण के लिए पर्याप्त अन्न प्राप्त होता है, (नमः) = उनमें नमन की वृत्ति होती है। ५. उनका (यज्ञः) = सङ्ग (देवेषु) = दिव्य गुणों के उत्पादन में (कल्पताम्) = समर्थ हो । उनके सङ्ग से हममें भी दिव्य गुण उत्पन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ - १. 'पितर' शब्द से कहलाने योग्य व्यक्ति वे हैं जो [क] समचित्त-स्थितप्रज्ञ हैं। [ख] समान विज्ञानवाले हैं। [ग] नियन्त्रण के संसार में विचरते हैं, अर्थात् व्रती जीवनवाले हैं । २. इन पितरों को [क] उत्तम यश प्राप्त होता है। [ख] धारण के लिए आवश्यक अन्न दुर्लभ नहीं होता। [ग] इनमें नमन की वृत्ति होती है अथवा इन्हें सब नमस्कार करते हैं। ३. इनका सङ्ग हमें भी दिव्य गुणोंवाला बनाए ।
मराठी (2)
भावार्थ
जेथे बहुदर्शी अशा सज्जनांचा अन्नादी पदार्थांनी सत्कार होतो व ज्यांची एका धर्मात निष्ठा असते त्या विद्वानांची सभा खरा न्याय करते. त्याच राज्यात सर्व माणसांना ऐश्वर्य व सुख प्राप्त होते.
विषय
कुठे (कोणत्या वातावरणात) लोक सुखाने निवास करतात, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (ये) जे (समानाः) समान अर्थात (आयु, ज्ञान. बुद्धि, ऐश्वर्य, आदी विषयी समान आहेत) आणि (समनसः) समान विद्या, ज्ञान-विज्ञानात समान आहेत, असे (पितरः) प्रजेचे रक्षकगण (सैनिक, पोलिस आदी) (यमराज्ये) यथोचित न्याय करणाऱ्या सभाधीश राजाच्या राज्यात असतात, (तेषाम्) त्यांचे (लोकः) दर्शन (स्वधा) अन्न, (नमः) सत्कार आणि (यज्ञः) योग्य तो न्याय (देवेषु) विद्वानांना (कल्पताम्) प्राप्त होवो. (म्हणजे राजपुरूष पोलिस आदी लोकांनी प्रजेतील विद्वानांना योग्य तो न्याय नेहमी द्यावा. त्यांच्यासाठी भोजनादीची व्यवस्था करावी आणि त्यांच्या मानसन्मान करावा.) ॥45॥
भावार्थ
भावार्थ - ज्या राज्यात अशा विद्वानांची सभा (लोकसभा, राज्यसभा) असते की ज्यांची निष्ठा केवळ कर्तव्याविषयी आहे, तसेच जे प्रजेतील सज्जनांकडून सत्कारास पात्र आहेत आणि ज्यांच्याकरिता भोजन, धन आदीची योग्य व्यवस्था आहे, अशा विद्वानांची मिळून झालेली सभा योग्य तो न्याय करीत असते आणि त्या राज्यातच सर्व प्रजाजन ऐश्वर्य व सुखात जीवन व्यतीत करतात. ॥45॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The officials, who in the realm of a just king, are equal in status and knowledge, have their dwelling place, food, reverence and sense of fairness approved by the learned.
Meaning
May the parents, seniors, guardians of the people and officers who are under the governance of the ruler of the world be harmonious and agreeable in thought, word and deed, and may their home life, social status, standard of living and yajnic (creative) performance of duty be of the highest order of nobility and responsibility. And may they prosper and rise to the heights of divinity.
Translation
May the lodging, boarding and respected position of the elders, who are equal and of accordant thought and who dwell in a well-regulated kingdom, be secured through sacrifice among the learned ones. (1)
Notes
Samānāḥ, तुल्या:, equal; of equal status. Samanasaḥ, तुल्यमनस्का:, friendly to each other; of accor dant thought. Svadhā namaḥ, shelter and food. Yama rājye, यमस्य राज्यं यत्र तत्र, in a kingdom where there is rule of law; in a well-regulated state. Also, in the king dom of Yama, the god of death; in the yonder world.
बंगाली (1)
विषय
কুত্র জনাঃ সুখং নিবসন্তীত্যাহ ॥
কোথায় মনুষ্য সুখপূর্বক নিবাস করে এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(য়ে) যে সব (সমানাঃ) সদৃশ (সমনসঃ) তুল্য বিজ্ঞানযুক্ত (পিতরঃ) প্রজার রক্ষকগণ (য়মবাজ্যে) যথাবৎ ন্যায়কারী সভাধীশ রাজার রাজ্যে আছে (তেষাম্) তাহাদের (লোকঃ) সভার দর্শন (স্বধা) অন্ন (নমঃ) সৎকার এবং (য়জ্ঞঃ) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য ন্যায় (দেবেষু) বিদ্বান্ দিগের মধ্যে (কল্পতাম্) সক্ষম হউক ॥ ৪৫ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যেখানে বহুদর্শী অন্নাদি ঐশ্বর্য্য দ্বারা সংযুক্ত সজ্জনদিগের দ্বারা সৎকার প্রাপ্ত এক ধর্মতেই যাহার নিষ্ঠা, সেই সব বিদ্বান্দিগের সভা সত্যন্যায় করে সেই রাজ্যে সকল মনুষ্য ঐশ্বর্য্য ও সুখে নিবাস করে ॥ ৪৫ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়ে স॑মা॒নাঃ সম॑নসঃ পি॒তরো॑ য়ম॒রাজ্যে॑ ।
তেষাং॑ লো॒কঃ স্ব॒ধা নমো॑ য়॒জ্ঞো দে॒বেষু॑ কল্পতাম্ ॥ ৪৫ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ে সমানা ইত্যস্য বৈখানস ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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