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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 49
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    137

    उदी॑रता॒मव॑र॒ऽउत्परा॑स॒ऽउन्म॑ध्य॒माः पि॒तरः॑ सो॒म्यासः॑। असुं॒ यऽई॒युर॑वृ॒काऽऋ॑त॒ज्ञास्ते नो॑ऽवन्तु पि॒तरो॒ हवे॑षु॥४९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। ई॒र॒ता॒म्। अव॑रे। उत्। परा॑सः। उत्। म॒ध्य॒माः। पि॒तरः॑। सो॒म्यासः॑। असु॑म्। ये। ई॒युः। अ॒वृ॒काः। ऋ॒त॒ज्ञा इत्यृ॑त॒ऽज्ञाः। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। पि॒तरः॑। हवे॑षु ॥४९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः । असुँयऽईयुरवृकाऽऋतज्ञास्ते नोवन्तु पितरो हवेषु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। ईरताम्। अवरे। उत्। परासः। उत्। मध्यमाः। पितरः। सोम्यासः। असुम्। ये। ईयुः। अवृकाः। ऋतज्ञा इत्यृतऽज्ञाः। ते। नः। अवन्तु। पितरः। हवेषु॥४९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 49
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पितृभिः किम्भूतैः किं कार्य्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! येऽवृका ऋतज्ञाः पितरो हवेष्वसुमुदीयुस्ते न उदवन्तु, ये सोम्यासोऽवरे परासो मध्यमाः पितरसन्ति, तेऽस्मान् हवेषूदीरताम्॥४९॥

    पदार्थः

    (उत्) (ईरताम्) प्रेरताम् (अवरे) अर्वाचीनाः (उत्) (परासः) प्रकृष्टाः (उत्) (मध्यमाः) मध्ये भवाः (पितरः) पालकाः (सोम्यासः) सौम्यगुणसम्पन्नाः (असुम्) प्राणम् (ये) (ईयुः) प्राप्नुयुः (अवृकाः) अविद्यमानाः वृकाश्चौरा येषु ते (ऋतज्ञाः) ये ऋतं सत्यं जानन्ति (ते) (नः) अस्मान् (अवन्तु) रक्षन्तु (पितरः) रक्षितारः (हवेषु) संग्रामादिषु व्यवहारेषु॥४९॥

    भावार्थः

    ये जीवन्तो निकृष्टमध्यमोत्तमाः स्तेयादिदोषरहिता विदितवेदितव्या अधिगतयाथातथ्या विद्वांसस्सन्ति, ते विद्याभ्यासोपदेशाभ्यां सत्यधर्मग्राहकत्वेन बाल्यावस्थायां विवाहनिषेधेन सर्वाः प्रजाः पालयन्तु॥४९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    पिता आदि को कैसे होकर क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! (ये) जो (अवृकाः) चौर्यादि दोषरहित (ऋतज्ञाः) सत्य के जाननेहारे (पितरः) पिता आदि बड़े लोग (हवेषु) संग्रामदि व्यवहारों में (असुम्) प्राण को (उदीयुः) उत्तमता से प्राप्त हों, (ते) वे (नः) हमारी (उत्, अवन्तु) उत्कृष्टता से रक्षा करें और जो (सोम्यासः) शान्त्यादिगुणसम्पन्न (अवरे) प्रथम अवस्था युक्त (परासः) उत्कृष्ट अवस्था वाले (मध्यमाः) बीच के विद्वान् (पितरः) पिता आदि लोग हैं, वे हमको संग्रामादि कामों में (उदीरताम्) अच्छे प्रकार प्रेरणा करें॥४९॥

    भावार्थ

    जो जीते हुए प्रथम-मध्यम और उत्तम, चोरी आदि दोषरहित, जानने के योग्य, विद्या को जाननेहारे, तत्त्वज्ञान को प्राप्त विद्वान् लोग हैं, वे विद्या के अभ्यास और उपदेश से सत्य धर्म के ग्रहण करानेहारे कर्म से बाल्यावस्था में विवाह का निषेध करके सब प्रजाओं को पालें॥४९॥

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    विषय

    अवर, पर और मध्यम पिताओं का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( अवरे ) निकृष्ट, श्रेणी के, (परासः) उत्कृष्ट श्रेणी के और (मध्यमाः) बीच की श्रेणी के ( सोम्यासः ) राजा के अधीन रहने वाले, राष्ट्र के हितकारी, उत्तम स्वभाव के ( पितरः ) राज्य के पालक जन, (उद् उद् उद् ईरताम् ) उन्नति को प्राप्त हों और राष्ट्र की उन्नति करें । ( ये ) जो (ऋतज्ञाः) सत्य व्यवहारों एवं ऋत, सत्य व्यवस्था नियमों के विज्ञ और (अवृकाः) भेड़िये या चोर के समान प्रजा घातक और धन के चोर न होकर (असुम् ) प्राण को (ईयुः) धारण करते हैं, ईमानदारी से जीवन व्यतीत करते हैं (ते) वे (पितरः) पालक जन (नः) हमारी (हवेषु) संग्रामों में ( अवन्तु ) रक्षा करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ४१- ६१ – शंखो यामायनः ऋषिः । पितरः । त्रिष्टुप् धैवतः ॥

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    विषय

    स्वस्थ, निर्लोभ व सत्यज्ञानवाला

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र का वैखानस ऋषि हवि के द्वारा सब प्राणों को उत्तम बनाकर 'शंख' = उत्तम, शान्त इन्द्रियोंवाला बनता है। [शंख]। यह प्रार्थना करता है कि (अवरे) = सबसे अर्वाचीन काल में होनेवाले मेरे पिता (उदीरताम्) = मुझे उत्कृष्ट प्रेरणा दें। (उत्) = और (परासः) = सुदूर काल में होनेवाले मेरे प्रपितामह भी (उदीरताम्) = मुझे उत्कृष्ट प्रेरणा देनेवाले हों। (उत्) = और (मध्यमाः) = इन दोनों के मध्य में होनेवाले मेरे पितामह भी (उदीरताम्) = मुझे उत्कृष्ट प्रेरणा प्राप्त कराएँ । २. ये सब (पितर:) = मेरा पालन करनेवाले पिता-पितामह व प्रपितामह, (सोम्यासः) = अत्यन्त सौम्य स्वभाव के हैं, अथवा सोम का सम्पादन करनेवालों में उत्तम हैं। ये अपनी शक्ति का व्यर्थ में अपव्यय नहीं होने देते और इसलिए ३. ये वे हैं (ये) = जो (असुं ईयुः) = प्राणशक्ति को प्राप्त करते हैं। सोमरक्षण से इनकी प्राणशक्ति स्थिर रहती है। इस प्राणशक्ति की स्थिरता से ये स्वस्थ व दीर्घजीवी होते हैं। ४. (अवृकाः) = [वृक आदाने] ये वे हैं जिन्हें धन के आदान का लोभ नहीं है। इस धनलोभ के न होने से ये सब वासनाओं से ऊपर उठे हुए हैं। लोभ ही तो वासनावृक्ष का मूल है। उसके अभाव में इनका जीवन व्यसनों से ऊपर उठा हुआ है। ५. (ऋतजा:) = ये ऋत के ज्ञानवाले हैं, इन्हें सब सत्य ज्ञान प्राप्त है। इनका मस्तिष्क इस सत्यज्ञान से चमक रहा है। ६. (ते पितरः) = वे पितर (नः) = हमें (हवेषु) = जब-जब हम इन्हें पुकारें- आमन्त्रित करें उस-उस पुकारने के समय पर (अवन्तु) = रक्षित करें। उत्तम प्रेरणा प्राप्त कराके ये हमारे जीवनों को सन्मार्ग पर लानेवाले हों।

    भावार्थ

    भावार्थ-पिता- पितामह व प्रपितामह सभी हमें समय-समय पर उत्तम प्रेरणाएँ प्राप्त कराके अपने क्रियात्मक उदाहरण से स्वस्थ, निर्लोभ व सत्यज्ञान परिपूर्ण बनने के लिए उत्साहित करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    चोरी वगैरे दोषांनी रहित असे अजिंक्य तत्त्वज्ञानी, विद्वान लोक प्रथम, मध्यम व उत्तम अशा तीन प्रकारचे असून, योग्य विद्या जाणणारे असतात. त्यांनी विद्याभ्यासाने व उपदेशाने सत्य धर्माचे ग्रहण करून बाल्यावस्थेतील विवाहाचा निषेध करावा व सर्व लोकांचे पालन करावे किंवा त्यांना योग्य मार्गदर्शन करावे.

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    विषय

    पित्याने कसे वागावे, काय केले पाहिजे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (वीर सैनिक वा इच्छा व्यक्त करीत आहेत) लोकहो, (ये) जे (अवृकाः) चौर्य आदी दुष्कर्म न करणारे आणि (ऋतज्ञाः) सत्य जाणणारे आमचे (पितरः) पिता आदी वयोवृद्धजन आहेत, त्यानी (आम्हा-सैनिकांना वा युवकांना) (हवेषु) युद्ध अथवा संकट प्रसंगी (असुम्‌) प्राणशक्ती म्हणजे (उत्साह व प्रेरणा देत) (उदीयुः) आमच्याजवळ असावे. (ते) त्यांनी (नः) आमची (उत्‌, अवन्तु) सर्वप्रकारे रक्षा करावी. तसेच जे (सोम्यासः) शांतगुणादीसंपन्न (अवरे) प्रथम (वा सामान्य कोटीचे) आहेत, अथवा जे (परास) उत्कृष्ट अथवा जे (मध्यमाः) मध्यम कोटीचे विद्वान असलेले (पितरः) पिता आदी वयस्कर मंडळी आहेत, त्यांनी आम्हा (युवकांना) युद्ध करण्यास अथवा उत्तम कर्म करण्यास (उदीरताम्‌) प्रेरित करावे (अशी आम्ही इच्छा करतो) ॥49॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे विजय अथवा सुयश प्राप्त केलेले विद्वान आहेत, त्यापैकी काही प्रथम, काही मध्यम तर काही उत्तम कोटीचे आहेत, अशा चौर्य आदी दोषांपासून दूर असलेल्या विद्या जाणणाऱ्या तत्त्वज्ञानाचे विद्वान, लोकांनी इतरांना विद्याभ्यास करवावा, उपदेशाद्वारे त्याना सत्यधर्म धारक करावे आणि त्या लोकांना बाल्यावस्तेत विवाह करण्यापासून परावृत्त करावे (पूर्ण युवावस्था प्राप्त झाल्यानंतरच विवाहाची अनुमती द्यावी ॥49॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May our parents, who do not steal, know the truth, gain strength of battles, through control of breath, protect us well. May the lowest, highest, midmost elders calm and peaceful in nature, urge us on to battle.

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    Meaning

    May all our seniors, guardians of the nation, far and near, old and new, high and low, and all those of the middle rank, settled in peace, prosperity and power, inspire us with passion and energy. May our parents and seniors dedicated to truth and rectitude, far from violence and exploitation, who raise the pranic energy of life, guide and protect us in our battles of the world.

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    Translation

    May the delightful elders of the lowest, the highest and the middle category, ascend higher. May they, the kind-hearted and truth-knowing elders, who have gained life, render help to us at our calls. (1)

    Notes

    Avare, parāsaḥ, madhyamaḥ, lower, high and the middle (category). Or, dwelling on earth, in the sky and in the mid-space. Somyasaḥ, delightful. Also, drinkers of Soma. Asum ya iyuḥ, those who have obtained life. Also, who have gone to the world of spirits; those who, have been reduced to the vital breaths. Avṛkāḥ, 39, who are not of a wolf-like nature, i. e. kind hearted. Also, नास्ति वृकः, शत्रुर्येषां ते, अनमित्राः, those who have no enemies.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পিতৃভিঃ কিম্ভূতৈঃ কিং কার্য়্যমিত্যাহ ॥
    পিতাদিকে কেমন হইয়া কী করা উচিত এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (য়ে) যে সব (অবৃকাঃ) চৌর্য্যাদি দোষ রহিত (ঋতজ্ঞাঃ) সত্যজ্ঞাতা (পিতরঃ) পিতরাদি মহান ব্যক্তিগণ (হবেষু) সংগ্রামাদি ব্যবহারে (অসুম্) প্রাণকে (উদীয়ুঃ) উত্তমতাপূর্বক প্রাপ্ত হয় (তে) তাহারা (নঃ) আমাদের (উৎ, অবন্তু) উৎকৃষ্টতাপূর্বক রক্ষা করুক এবং যে সব (সোম্যাসঃ) শান্ত্যাদিগুণ সম্পন্ন (অবরে) প্রথম অবস্থা যুক্ত (পরাসঃ) উৎকৃষ্ট অবস্থা যুক্ত (মধ্যমাঃ) মধ্যম বিদ্বান্ (পিতরঃ) পিতাদি ব্যক্তিগণ তাহারা আমাদেরকে সংগ্রামাদি কর্মে (উদীরতাম্) উত্তম প্রকার প্রেরণা করুন ॥ ৪ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে জীবিত প্রথম, মধ্যম ও উত্তম চৌর্য্যাদি দোষ রহিত জানিবার যোগ্য বিদ্যাজ্ঞাতা তত্ত্বজ্ঞানপ্রাপ্ত বিদ্বান্ লোকেরা আছেন, তাহারা বিদ্যার অভ্যাস এবং উপদেশ দ্বারা সত্যধর্মের গ্রহণকারী কর্ম দ্বারা বাল্যাবস্থায় বিবাহের নিষেধ করিয়া সব প্রজাদিগকে পালন করিবে ॥ ৪ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    উদী॑রতা॒মব॑র॒ऽউৎপরা॑স॒ऽউন্ম॑ধ্য॒মাঃ পি॒তরঃ॑ সো॒ম্যাসঃ॑ ।
    অসুং॒ য়ऽঈ॒য়ুর॑বৃ॒কাऽঋ॑ত॒জ্ঞাস্তে নো॑ऽবন্তু পি॒তরো॒ হবে॑ষু ॥ ৪ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    উদীরতামিত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । বিরাট্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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