यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 59
अग्नि॑ष्वात्ताः पितर॒ऽएह ग॑च्छत॒ सदः॑सदः सदत सुप्रणीतयः। अ॒त्ता ह॒वीषि॒ प्रय॑तानि ब॒र्हिष्यथा॑ र॒यिꣳ सर्व॑वीरं दधातन॥५९॥
स्वर सहित पद पाठअग्नि॑ष्वात्ताः। अग्नि॑ष्वात्ता॒ इत्यग्नि॑ऽस्वात्ताः। पि॒त॒रः॒। आ। इ॒ह। ग॒च्छ॒त॒। सदः॑सद॒ इति॒ सदः॑ऽसदः। स॒द॒त॒। सु॒प्र॒णी॒त॒यः॒। सु॒प्र॒णी॒त॒य॒ इति॑ सुऽप्रनीतयः। अ॒त्त। ह॒वीषि॑। प्रय॑ता॒नीति॒ प्रऽय॑तानि। ब॒र्हिषि॑। अथ॑। र॒यिम्। सर्व॑वीर॒मिति॒ सर्व॑ऽवीरम्। द॒धा॒त॒न॒ ॥५९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निष्वात्ताः पितरऽएह गच्छत सदःसदः सदत सुप्रणीतयः । अत्ता हवीँषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिँ सर्ववीरन्दधातन् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निष्वात्ताः। अग्निष्वात्ता इत्यग्निऽस्वात्ताः। पितरः। आ। इह। गच्छत। सदःसद इति सदःऽसदः। सदत। सुप्रणीतयः। सुप्रणीतय इति सुऽप्रनीतयः। अत्त। हवीषि। प्रयतानीति प्रऽयतानि। बर्हिषि। अथ। रयिम्। सर्ववीरमिति सर्वऽवीरम्। दधातन॥५९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे सुप्रणीतयोऽग्निष्वात्ताः पितरो! यूयमिहागच्छत सदःसदः सदत, प्रयतानि हवींष्यत्ताऽथ बर्हिषि स्थित्वाऽस्मदर्थं सर्ववीरं रयिं दधातन॥५९॥
पदार्थः
(अग्निष्वात्ताः) अधीताग्निविद्याः (पितरः) पालकाः (आ) (इह) अस्मिन् वर्त्तमाने काले विद्याप्रचाराय (गच्छत) (सदःसदः) सीदन्ति यस्मिन् यस्मिन् तत्तद् गृहम् (सदत) (सुप्रणीतयः) शोभना प्रगता नीतिर्न्यायो येषान्ते (अत्त) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा॰६.३.१३५] इति दीर्घः (हवींषि) अत्तुमर्हाण्यन्नादीनि (प्रयतानि) प्रयत्नेन साधितानि (बर्हिषि) उत्तमे व्यवहारे (अथ) अत्र निपातस्य च [अष्टा॰६.३.१३६] इति दीर्घः। (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात् प्राप्यन्ते तम् (दधातन) धरत॥५९॥
भावार्थः
ये विद्वांस उपदेशाय गृहङ्गृहं प्रति गत्वाऽऽगत्य च सत्यं धर्मं प्रचारयन्ति, ते गृहस्थैः श्रद्धया दत्तान्यन्नपानादीनि सेवन्ताम्, सर्वाञ्छरीरात्मबलयोग्यान् पुरुषार्थिनः कृत्वा श्रीमन्तः कुर्वन्तु॥५९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी उक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (सुप्रणीतयः) अत्युत्तम न्यायधर्म से युक्त (अग्निष्वात्ताः) अग्न्यादि पदार्थविद्या में निपुण (पितरः) पालन करनेहारे पितरो! आप लोग (इह) इस वर्त्तमान समय में विद्याप्रचार के लिये (आ, गच्छत) आओ (सदःसद) जहां-जहां बैठें, उस-उस घर में (सदत) स्थित होओ (प्रयतानि) अति विचार से सिद्ध किये हुए (हवींषि) भोजन के योग्य अन्नादि का (अत्त) भोग करो। (अथ) इसके पश्चात् (बर्हिषि) विद्याप्रचाररूप उत्तम व्यवहार में स्थित होकर हमारे लिये (सर्ववीरम्) सब वीर पुरुषों को प्राप्त करानेहारे (रयिम्) धन को (दधातन) धारण कीजिये॥५९॥
भावार्थ
जो विद्वान् लोग उपदेश के लिये घर-घर के प्रति गमनागमन करके सत्यधर्म का प्रचार करते हैं, वे गृहस्थों में श्रद्धा से दिये हुए अन्नपानादि का सेवन करें। सब को शरीर और आत्मा के बल से योग्य पुरुषार्थी करके श्रीमान् करें॥५९॥
विषय
उनके सर्ववीर रयि का रहस्य ।
भावार्थ
हे (अग्निष्वात्ताः पितरः) पूर्वोक्त अग्निष्वात्त, अग्रणी रूप से राजा द्वारा स्वीकृत पालक पुरुषो ! आप लोग (इह आगच्छत) यहां आओ और (सुप्रणीतयः) उत्तम मार्ग से ले जाने एवं न्याय और राजनीति के वर्तने में कुशल (सदः सदः सदत) अपने-अपने पृथक घरों और एवं राजसभाओं में विराजमान होओ और (प्रयतानि) नियम पूर्वक, नियत (हवींषि) स्वीकार योग्य अन्न आदि वेतनों को (अत्त) भोग करो । (अथा) और (बर्हिषि) विशाल राष्ट्र पर ( सर्ववीरम् रयिम् ) समस्त वीरों के उत्पादक ऐश्वर्य को ( दधातन) धारण करो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंखः । पितरः । निचृद् जगती । निषादः ॥
विषय
सुप्रणीतयः - उत्तम प्रणयन करनेवाले
पदार्थ
१. हे (अग्निष्वात्ता:) = अग्नि आदि पदार्थों के विज्ञान को सम्यक् ग्रहण करनेवाले (पितर:) = ज्ञानप्रद आचार्यो ! इह आगच्छत-आप यहाँ हमारे घरों पर आइए। २. (सदः सदः) = प्रत्येक सभा में (सुप्रणीतयः) = उत्तम, प्रकृष्ट नीतिवाले आप सदत अपना स्थान ग्रहण कीजिए। जब-जब हमारी कोई भी सभा हो तब-तब उसमें ये ज्ञानी आचार्य सभापति पद का आसन ग्रहण करके हमारी उस सभा का (सुप्रणयन) = [सञ्चालन] करें। ३. हमसे (प्रयतानि) = प्रयत्नपूर्वक सिद्ध की हुई अथवा पवित्र (हवींषि) = हव्य - सात्त्विक पदार्थों को (अत्त) = आप खाइए, अर्थात् हम इन आमन्त्रित ज्ञानी आचार्यों के लिए पवित्र सात्त्विक अन्नों को प्राप्त करानेवाले हों। वे इन अन्नों को स्वीकार करें। ४. (अथ) = और अब (बर्हिषि) = हृदय के निर्वासन होने पर (सर्ववीरम्) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में वीरता व शक्ति का आधान करनेवाले (रयिम्) = धन को (दधातन) = हममें धारण कीजिए। ये पितर वस्तुतः इस प्रकार के नीतिमार्ग का उपदेश देते हैं कि उसपर चलते हुए हम हृदय में उत्पन्न होनेवाली वासनाओं के शिकार नहीं होते और इस प्रकार अपने अङ्गो को वीरतापूर्ण बना पाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम विज्ञान में निपुण पितरों के सदुपदेशों से सुनीति के मार्ग पर चलते हुए वासनाओं को जीतें और अपने प्राणों को सबल बनाएँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जे विद्वान लोक उपदेश करण्यासाठी घरोघरी जाऊन सत्य धर्माचा प्रचार करतात त्यांनी गृहस्थाश्रमी लोकांच्या अन्नाचा श्रद्धापूर्वक स्वीकार करावा व सर्वांचे शरीर व आत्मा यांचे बळ वाढवून योग्य पुरुषार्थी व धनवाद बनवावे.
विषय
पुनश्च, तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (सुप्रणीतयः) उत्तम न्यायधर्माने वागणाऱ्या (अग्निष्वात्ताः) अग्नि आदी पदार्थ विद्येत निपुण असलेल्या (पितरः) पालन करणाऱ्या पिता आदी जन हो, आपण (इह) याठिकाणी (विद्यालयात वा आमच्या घरात) विद्येचा प्रसार करण्यासाठी (आ, गच्छत) या (सदः सदः) आम्ही (विद्यार्थी वा शिक्षण घेण्यास इच्छुक लोक) ज्या ज्या घरात आहेत, तिथे तिथे (सदत) या (शिक्षणाच्या प्रसारासाठी शिक्षकांनी घराघरापर्यंत जावे. कोणी निरक्षर वा अशिक्षित राहू नये, याची काळजी घ्यावी) विद्यार्थ्यांनी (प्रपतानि) प्रयत्नपूर्वक तयार केलेल्या (हवींषि) भोज्य पदार्थांचे आपण (अत्त) सेवन करा. (अथ) त्यानंतर (बर्हिषि) विद्याप्रसार रूप श्रेष्ठ कर्म करीत आपण आम्हा (गृहस्थांसाठी वा विद्यार्थ्यांसाठी) (सर्ववीरम्) वीर पुरूषांची प्राप्ती करून देणारे (ज्यामुळे अनेक वीर सैनिकांना साहाय्य करता येईल, असे (रयिम्) धन (दधातन) धारण करा (आम्ही दिलेल्या धनाद्वारे रक्षकवीर तयार करा, अशी विनंती आहे) ॥59॥
भावार्थ
भावार्थ - जे विद्वज्जन उपदेश देण्यासाठी घरोघरी जातात आणि त्यारूपाने सत्यधर्माचा प्रचार करतात, त्यांनी, गृहस्थांनी श्रद्धेने प्रस्तुत केलेले अन्न, पान आदीचा स्वीकार करावा आणि सर्व गृहस्थांना शारीरिक तसेच आत्मिक बळ देऊन त्यांना पुरूषार्थी व श्रीमान करावे. ॥59॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May the learned persons, who know the science of fire and material objects, are well-versed in politics, come now for the spread of knowledge, visiting house to house, and staying there, eat the meals prepared carefully. Hence, being engaged in the noble work of spreading education, may they grant us riches with brave sons.
Meaning
Senior scholars and experts of the science of heat and energy, men of justice and positive policy, come here to us, seat yourselves in every home and every hall of assembly, take the food and materials prepared with care and offered with love and hope, and, sitting in your laboratory and workshop, create the knowledge, impart it to people, and produce the wealth which creates versatile heroes for the nation and humanity.
Translation
О elders, expert in uses of fires, may you come here. O worthy leaders, may you occupy your proper places. May you eat the foodstuffs offered on the sacred grass-mats and thereafter grant us riches along with numerous children. (1)
Notes
Sadaḥ sadaḥ, well-versed in parliamentary manners; those who have been occupying seats in the assemblies. Supranitayah, शोभना नीतिर्न्यायो येषां ते, makers of good laws. spreading of sacri Attā, अत्त भक्षयत, eat. Prayatāni barhiṣī, spread out on mats. Sarvaviram, सर्वे वीराः पुत्राः यत्र तम्, wherein there are all sons or all brave.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ উক্ত বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (সুপ্রণীতয়ঃ) অত্যুত্তম ন্যায়ধর্ম দ্বারা যুক্ত (অগ্নিষ্বাত্তাঃ) অগ্ন্যাদি পদার্থবিদ্যায় নিপুণ (পিতরঃ) পালনকারী পিতরগণ! আপনারা (ইহ) এই বর্ত্তমান সময়ে বিদ্যা প্রচার হেতু (আ, গচ্ছত) আসুন (সদঃসদঃ) যেখানে যেখানে বসিবেন সেই সেই গৃহে (সদত) স্থিত হউন (প্রয়তানি) অতি বিচার দ্বারা সিদ্ধকৃত (হবীংষি) ভোজন যোগ্য অন্নাদির (অত্ত) ভোগ করুন (অথ) ইহার পশ্চাৎ (বর্হিষি) বিদ্যাপ্রচার রূপ উত্তম ব্যবহারে স্থিত হইয়া আমাদের জন্য (সর্ববীরম্) সকল বীর পুরুষদিগের প্রাপ্তিকারী (রয়িম্) ধনকে (দধাতন) ধারণ করুন ॥ ৫ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে সব বিদ্বান্গণ উপদেশ হেতু প্রতি গৃহে গমনাগমন করিয়া সত্যধর্মের প্রচার করেন তাহারা গৃহস্থদিগের মধ্যে শ্রদ্ধা দ্বারা প্রদত্ত অন্নপানাদির সেবন করিবে । সকলকে শরীর ও আত্মার বল দ্বারা যোগ্য পুরুষকার সম্পন্ন করিয়া শ্রীমান্ করিবে ॥ ৫ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অগ্নি॑ষ্বাত্তাঃ পিতর॒ऽএহ গ॑চ্ছত॒ সদঃ॑সদঃ সদত সুপ্রণীতয়ঃ ।
অ॒ত্তা হ॒বীᳬंষি॒ প্রয়॑তানি ব॒র্হিষ্যথা॑ র॒য়িꣳ সর্ব॑বীরং দধাতন ॥ ৫ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অগ্নিষ্বাত্তা ইত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । নিচৃজ্জগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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