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यजुर्वेद अध्याय - 36

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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 12
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    शन्नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ऽआपो॑ भवन्तु पी॒तये॑।शंयोर॒भि स्र॑वन्तु नः॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। दे॒वीः। अ॒भिष्ट॑ये। आपः॑। भ॒व॒न्तु॒। पी॒तये॑ ॥ शंयोः। अ॒भि। स्र॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शँयोरभि स्रवन्तु नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। देवीः। अभिष्टये। आपः। भवन्तु। पीतये॥ शंयोः। अभि। स्रवन्तु। नः॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 12
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    पदार्थ -

    पदार्थ = हे परमात्मन् ! ( देवी आपः ) = दिव्य गुण युक्त जल, महात्मा, आप ईश्वर, विद्वान आप्त पुरुष, श्रेष्ठ कर्म और ज्ञान  ( नः अभिष्टये ) = हमारे अभिलषित कार्यों के सिद्ध करने के लिए  ( शम् नः ) =  हमें शान्तिदायक हों और वे ( पीतये भवन्तु ) = पान और पालन रक्षण के लिए भी हों। वे ही  ( नः ) = हम पर  ( शंयोः अभिस्त्रवन्तु ) = शान्ति सुख का सब ओर से वर्षण करने और बहानेवाले हों।

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे जगदीश्वर! हम पर आप कृपा करें कि, दिव्य गुणवाले जल आदि पदार्थ, आप्त  वक्ता विद्वान् महात्मा लोग, श्रेष्ठ कर्म, ज्ञान और आप ईश्वर हमारे इष्ट कार्यों को सिद्ध करते हुए, हमें शान्तिदायक हों। ये ही हमारा पालनपोषण करके हम पर सब ओर से शान्ति सुख की वर्षा करनेवाले हों।
     

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