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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 4
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣣ग्नि꣢र्वृ꣣त्रा꣡णि꣢ जङ्घनद्द्रविण꣣स्यु꣡र्वि꣢प꣣न्य꣡या꣢ । स꣡मि꣢द्धः शु꣣क्र꣡ आहु꣢꣯तः ॥४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ग्निः꣢ । वृ꣣त्रा꣡णि꣢ । ज꣣ङ्घनत् । द्रविणस्युः꣢ । वि꣣पन्य꣡या꣢ । स꣡मि꣢꣯द्धः । सम् । इ꣣द्धः । शुक्रः꣢ । आ꣡हु꣢꣯तः । आ । हु꣣तः ॥४॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद्द्रविणस्युर्विपन्यया । समिद्धः शुक्र आहुतः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निः । वृत्राणि । जङ्घनत् । द्रविणस्युः । विपन्यया । समिद्धः । सम् । इद्धः । शुक्रः । आहुतः । आ । हुतः ॥४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 4
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( विपन्यया ) = स्तुति से ( द्रविणस्युः ) = अपने प्यारे उपासकों के लिए आत्मिक बल रूप धन को चाहनेवाला ( समिद्धः ) = विज्ञात हुआ ( शुक्र: ) = ज्ञान और बलवाला तथा ज्ञान और बल का दाता ( आहुत: ) = अच्छे प्रकार से भक्ति किया हुआ ( अग्निः ) = ज्ञानस्वरूप ईश्वर ( वृत्राणि ) = अविद्यादि अन्धकार दुःखों और दुःख साधनों को ( जङ्घनत् ) = हनन करे ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे जगत्पते ! आपकी प्रेम से स्तुति प्रार्थना उपासना करनेवालों को आप आत्मिक बल देते हैं, जिससे आपके प्यारे उपासक भक्त,अविद्यादि पञ्च क्लेश और सब प्रकार के दुःख और दुःख साधनों को दूर करते हुए, सादा आपके ब्रह्मानन्द में मग्न रहते हैं। कृपासिन्धो भगवन्! हम पर ऐसी कृपा करो कि हम भी आपके ध्यान में मग्न हुए, अविद्यादि सब क्लेशों और उनके कार्य दुःखों और दुःख-साधनों को दूर कर, आपके स्वरूपभूत ब्रह्मानन्द को प्राप्त होवें।
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