Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 55

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगुः देवता - इन्द्रः छन्दः - विराट्परोष्णिक् सूक्तम् - मार्गस्वस्त्य अयन सूक्त

    ये ते॒ पन्था॑नोऽव दि॒वो येभि॒र्विश्व॒मैर॑यः। तेभिः॑ सुम्न॒या धे॑हि नो वसो ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ते॒ । पन्था॑न: । अव॑ । दि॒व: । येभि॑: । विश्व॑म् । ऐर॑य: । तेभि॑: । सु॒म्न॒ऽया । आ । धे॒हि॒ । न॒: । व॒सो॒ इति॑ ॥५७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते पन्थानोऽव दिवो येभिर्विश्वमैरयः। तेभिः सुम्नया धेहि नो वसो ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । ते । पन्थान: । अव । दिव: । येभि: । विश्वम् । ऐरय: । तेभि: । सुम्नऽया । आ । धेहि । न: । वसो इति ॥५७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 55; मन्त्र » 1

    पदार्थ -

    शब्दार्थ =  ( वसो ) = हे श्रेष्ठ परमेश्वर !  ( ये ) = जो  ( ते ) = आपके  ( दिवः पन्थान: ) = प्रकाश के मार्ग  ( अव ) = निश्चय करके हैं  ( येभिः ) = जिनके द्वारा  ( विश्वम् ) = संसार को  ( ऐरय: ) = आप ने चलाया है।  ( तेभिः ) = उन से ही  ( सुम्नया ) = सुख के साथ  ( न: ) = हमें  ( आधेहि ) = सब ओर से पुष्ट करो । 

    भावार्थ -

    भावार्थ = जिज्ञासु पुरुषों को चाहिये कि परमात्मा के बताये वेदमार्ग पर चल अपनी और अपने देशवासियों की शारीरिक, सामाजिक और आत्मिक उन्नति करें ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top