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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 171 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 171/ मन्त्र 1
    ऋषिः - इटो भार्गवः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं त्यमि॒टतो॒ रथ॒मिन्द्र॒ प्राव॑: सु॒ताव॑तः । अशृ॑णोः सो॒मिनो॒ हव॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । त्यम् । इ॒टतः॑ । रथ॑म् । इन्द्र॑ । प्र । आ॒वः॒ । सु॒तऽव॑तः । अशृ॑णोः । सो॒मिन॑ । हव॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं त्यमिटतो रथमिन्द्र प्राव: सुतावतः । अशृणोः सोमिनो हवम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । त्यम् । इटतः । रथम् । इन्द्र । प्र । आवः । सुतऽवतः । अशृणोः । सोमिन । हवम् ॥ १०.१७१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 171; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (इन्द्र त्वम्) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! तू (इटतः) तेरे प्रति गति करते हुए (सुतावतः) उपासनारसवाले उपासना करते हुए के (त्यं रथं प्र-आवः) उस मनोरथ की भलीभाँति रक्षा करता है तथा (सोमिनः) उस सोमरस सम्पादन करनेवाले के (हवम्) प्रार्थनावचन को (अशृणोः) तू सुनता है-पूरा करता है ॥१॥

    भावार्थ - परमात्मा के प्रति जानेवाले और उसकी उपासना करनेवाले के मनोरथ की परमात्मा रक्षा करता है, उसके प्रार्थनावचनों को सुनता है, कामना पूरी करता है ॥१॥

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