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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 39/ मन्त्र 14
    ऋषिः - घोषा काक्षीवती देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒तं वां॒ स्तोम॑मश्विनावक॒र्मात॑क्षाम॒ भृग॑वो॒ न रथ॑म् । न्य॑मृक्षाम॒ योष॑णां॒ न मर्ये॒ नित्यं॒ न सू॒नुं तन॑यं॒ दधा॑नाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तम् । वा॒म् । स्तोम॑म् । अ॒श्वि॒नौ॒ । अ॒क॒र्म॒ । अत॑क्षाम । भृग॑वः । न । रथ॑म् । नि । अ॒मृ॒क्षा॒म॒ । योष॑णाम् । न । मर्ये॑ । नित्य॑म् । न । सू॒नुम् । तन॑यम् । दधा॑नाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतं वां स्तोममश्विनावकर्मातक्षाम भृगवो न रथम् । न्यमृक्षाम योषणां न मर्ये नित्यं न सूनुं तनयं दधानाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतम् । वाम् । स्तोमम् । अश्विनौ । अकर्म । अतक्षाम । भृगवः । न । रथम् । नि । अमृक्षाम । योषणाम् । न । मर्ये । नित्यम् । न । सूनुम् । तनयम् । दधानाः ॥ १०.३९.१४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 39; मन्त्र » 14
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (अश्विना) हे अश्ववाले-राष्ट्रवाले-राष्ट्र के प्रधान पुरुषों ! (वाम्) तुम दोनों के लिए (एतं स्तोमम्-अकर्म-अतक्षाम) इस प्रशंसनीय आदेश का हम आचरण करते हैं तथा उसके अनुसार अपने को साधते हैं (भृगवः-न रथम्) जैसे भर्जनशील-ज्ञान से दीप्तिमान् तेजस्वी जन अपने रमणस्थान यान को साधते हैं (नि-अमृक्षाम मर्ये न योषणाम्) वर के निमित्त-वर के लिए जैसे वधू को वस्त्र भूषण आदि से संस्कृत करते हैं, ऐसे ही संस्कृत अर्थात् परिशुद्ध जीवन को हम प्रसिद्ध करते हैं (सूनुं तनयं नित्यं न दधानाः) जैसे पुत्र-पौत्र को नित्य धारण करते हुए हम यत्न करते हैं, एवं जीवन को साधते हैं ॥१४॥

    भावार्थ - अश्ववाले-राष्ट्रवाले राष्ट्रशासक प्रधान पुरुष राजा व मन्त्री के लिए प्रशंसनीय उपहार देना और उनके आदेश का पालन करना चाहिए। तेजस्वी विद्वान् विमान आदि यान बनावें और वस्त्र-भूषण आदि से सुभूषित करके कन्याओं के विवाह की व्यवस्था करें। उत्तम पुत्र-पौत्र गृहस्थ में प्राप्त करें ॥१४॥

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