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अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - आयुः छन्दः - निचृत्पुरोदेवत्यापङ्क्तिः सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    म्रोकानु॑म्रोक॒ पुन॑र्वो यन्तु या॒तवः॒ पुन॑र्हे॒तिः कि॑मीदिनः। यस्य॒ स्थ तम॑त्त॒ यो वः॒ प्राहै॒त्तम॑त्त॒ स्वा मां॒सान्य॑त्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म्रोक॑ । अनु॑ऽम्रोक । पुन॑: । व॒: । य॒न्तु॒ । या॒तव॑: । पुन॑: । हे॒ति:। कि॒मी॒दि॒न॒: । यस्य॑ । स्थ । तम् । अ॒त्त॒ । य: । व॒: । प्र॒ऽहै॑त् । तम् । अ॒त्त॒ । स्वा । मां॒सानि॑ । अ॒त्त॒ ॥२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    म्रोकानुम्रोक पुनर्वो यन्तु यातवः पुनर्हेतिः किमीदिनः। यस्य स्थ तमत्त यो वः प्राहैत्तमत्त स्वा मांसान्यत्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    म्रोक । अनुऽम्रोक । पुन: । व: । यन्तु । यातव: । पुन: । हेति:। किमीदिन: । यस्य । स्थ । तम् । अत्त । य: । व: । प्रऽहैत् । तम् । अत्त । स्वा । मांसानि । अत्त ॥२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 24; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    हे (शेवृधक) हे हिंसा के कार्य में सबसे आगे बढ़ने वाले घातक ! सर्पस्वभाव ! और हे (म्रोक) धन अपहरण करके छुप जाने वाले चोर ! और हे (अनुम्रोक) चोरों के पीछे उनके ही बुरे काम का अनुसरण करने वाले ! हे (सर्प) कुटिल मार्ग से चलने वाले पुरुष ! और हे (अनुसर्प) कुटिल पुरुष के साथी लोगो ! आप सब लोग (किमीदिनः) किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो। तुम लोग जब बुरा काम करते हो तो तुम लोगों के दिल ‘अब क्या होगा ? अब कैसे’, इत्यादि फिकिरों में धुक् २ किया करते हैं। पर यह याद रखना कि तुम्हारी ये सब (यातवः) पीड़ाएं जो तुम अन्य लोगों को देते हो (वः यन्तु) तुम्हें ही प्राप्त होंगी। (पुनः हेतिः) यह शस्त्रप्रहार भी तुमको प्राप्त होगा। अर्थात् पकड़े जाने पर तुम छोड़ नहीं दिये जाओगे, क्योंकि स्वभावतः (यस्य स्थ) जिसके तुम रहते हो (तम् अत्त) उसको खाजाते हो । (यः वः) जो तुम लोगों कों (प्राहैत्) प्रेरणा दे (तं अत्त) उसको खाजाते हो और फिर लाचार होकर (स्वा मांसानि अत्त) अपने में आप को भी नष्ट भ्रष्ट कर लेते हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः । शेरभकादयो मन्त्रोक्ता देवताः। १, २ पुर उष्णिहौ, ३, ४ पुरोदेवत्ये पङ्क्तिः । १-४ वैराजः । ५-८ पंचपदाः पथ्यापङ्क्ति । ५, ६ भुरिजौ । ६, ७ निचृतौ। ५ चतुष्पदा बृहती । ६-८ भुरिजः। अष्टर्चं सूक्तम्।

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