अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 21/ मन्त्र 5
गावो॒ भगो॒ गाव॒ इन्द्रो॑ म इछा॒द्गावः॒ सोम॑स्य प्रथ॒मस्य॑ भ॒क्षः। इ॒मा या गावः॒ स ज॑नास॒ इन्द्र॑ इ॒च्छामि॑ हृ॒दा मन॑सा चि॒दिन्द्र॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठगाव॑: । भग॑: । गाव॑: । इन्द्र॑: । मे॒ । इ॒च्छा॒त् । गाव॑: । सोम॑स्य । प्र॒थ॒मस्य॑ । भ॒क्ष: । इ॒मा: । या: । गाव॑: । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: । इ॒च्छामि॑ । हृ॒दा । मन॑सा । चि॒त् । इन्द्र॑म् ॥२१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
गावो भगो गाव इन्द्रो म इछाद्गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः। इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामि हृदा मनसा चिदिन्द्रम् ॥
स्वर रहित पद पाठगाव: । भग: । गाव: । इन्द्र: । मे । इच्छात् । गाव: । सोमस्य । प्रथमस्य । भक्ष: । इमा: । या: । गाव: । स: । जनास: । इन्द्र: । इच्छामि । हृदा । मनसा । चित् । इन्द्रम् ॥२१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 21; मन्त्र » 5
विषय - गो-कीर्तन।
भावार्थ -
गौओं के दृष्टान्त से आत्मा का वर्णन करते हैं। जिस प्रकार लोक में गौएं हीं ऐश्वर्य हैं उसी प्रकार (गावः) ये विषयों तक पहुंचने वाली इन्द्रियां ही (भगः) उस आत्मा की ऐश्वर्य हैं, (इन्द्रः) उस ऐश्वर्यवान् प्रभु परमात्मा ने (मे) मुझे (गावः) इन्द्रियां (इच्छात्) इच्छा पूर्वक दी हैं। (गावः) गौवों के गोरस जिस प्रकार सोम में मिलाने लायक द्रव्य हैं उसी प्रकार इन्द्रियों के ये रस (प्रथमस्य सोमस्य) श्रेष्ठ सोम=शमदम आदि गुणसम्पन्न आत्मा के (भक्षः) भोग्य पदार्थ हैं। हे (जनासः) मनुष्यो ! (इमाः याः गावः) ये जो इन्द्रियों के सामर्थ्य रूप हैं (सः इन्द्रः) वही इन्द्र = आत्मा है। (हृदा) हृदय से और (मनसा) मननशील बुद्धि से भी उसी (इन्द्रम् चित्) पूज्य इन्द्र = आत्मा को मैं (इच्छामि) प्राप्त करना चाहता हूं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। गौदेवताः। २-४ जगत्यः, १, ५-७ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥
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