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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 10

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः छन्दः - यवमध्याककुप् सूक्तम् - आत्मा रक्षा सूक्त

    अ॑श्मव॒र्म मे॑ऽसि॒ यो मा॑ दि॒शाम॑न्तर्दे॒शेभ्यो॑ऽघा॒युर॑भि॒दासा॑त्। ए॒तत्स ऋ॑च्छात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्म॒ऽव॒र्म । मे॒ । अ॒सि॒ । य: । मा॒ । दि॒शाम् । अ॒न्त॒:ऽदे॒शेभ्य॑: । अ॒घ॒ऽयु: । अ॒भि॒ऽदासा॑त् । ए॒तत् । स: । ऋ॒च्छा॒त् ॥१०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्मवर्म मेऽसि यो मा दिशामन्तर्देशेभ्योऽघायुरभिदासात्। एतत्स ऋच्छात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्मऽवर्म । मे । असि । य: । मा । दिशाम् । अन्त:ऽदेशेभ्य: । अघऽयु: । अभिऽदासात् । एतत् । स: । ऋच्छात् ॥१०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 10; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    इसी प्रकार हे मेरे मन ! तू ही दृढ़ होकर (अश्मवर्म मे असि) मेरे लिये शिला सम दृढ़ अभेद्य कवच के समान है, (दक्षिणायाः दिशः) दक्षिण दिशा से या दायें से, (प्रतीच्याः दिशः) पश्चिम से या पीछे से, (उदीच्याः दिशः) उत्तर दिशा से या वायें से, (ध्रुवायाः दिशः) पृथ्वी की ओर से या नीचे से, या (ऊर्ध्वायाः दिशः) ऊपर की दिशा से, (दिशाम् अन्तर्देशेभ्यः) दिशाओं के बीच के भागों से, (यः अघायुः अभिदासात्) जो पापाचारी दुष्ट पुरुष मेरा विनाश करने का यत्न करे (एतत् स ऋच्छात्) वह इस प्रबल प्रहार को पावे, या वह इस प्रहार को खाकर पछड़ जाय।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। वास्तोष्पतिर्देवता। १-६ यवमध्या त्रिपदा गायत्री। ७ यवमध्या ककुप्। पुरोधृतिद्व्यनुष्टुब्गर्भा पराष्टित्र्यवसाना चतुष्पदाति जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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