अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 9
सूक्त - अथर्वा
देवता - अरातिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अरातिनाशन सूक्त
या म॑ह॒ती म॒होन्मा॑ना॒ विश्वा॒ आशा॑ व्यान॒शे। तस्यै॑ हिरण्यके॒श्यै निरृ॑त्या अकरं॒ नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठया । म॒ह॒ती । म॒हाऽउ॑न्माना । विश्वा॑: । आशा॑: । वि॒ऽआ॒न॒शे । तस्यै॑ । हि॒र॒ण्य॒ऽके॒श्यै । नि:ऽऋ॑त्यै । अ॒क॒र॒म् । नम॑: ॥७.९॥
स्वर रहित मन्त्र
या महती महोन्माना विश्वा आशा व्यानशे। तस्यै हिरण्यकेश्यै निरृत्या अकरं नमः ॥
स्वर रहित पद पाठया । महती । महाऽउन्माना । विश्वा: । आशा: । विऽआनशे । तस्यै । हिरण्यऽकेश्यै । नि:ऽऋत्यै । अकरम् । नम: ॥७.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 9
विषय - अधीन भृत्यों को वेतन देने की व्यवस्था।
भावार्थ -
धन की वृद्धि से पाप की वृद्धि होती है उसका रूप भी देखिये। (या) जो पाप प्रवृत्ति (महती) बड़ी भारी (महोन्माना) बड़ी विशाल परिणाम में फैली हुई (विश्वाः आशाः व्यानशे) सब दिशाओं में फैलजाती है (तस्यै) उस (हिरण्यकेश्यै) सुवर्ण के कारण लाखों विपत्तियां डालने वाली (निर्ऋत्यै नमः अकरम्) निर्ऋति, पाप-प्रवृत्ति को भी वज्र दिखाऊं अर्थात् उसको भी दबाने का उपाय करूं। लोग दानशील हों, इस प्रकार धन किसी का अनुचित मात्रा में बढ़ने न पावे तो अधिकार किसी के मारे न जावें। सब रोजी भरपेट पावें तो चोरी, जारी, डाकाज़नी न बढ़े।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। बहवो देवताः। १-३, ६-१० आदित्या देवताः। ४, ५ सरस्वती । २ विराड् गर्भा प्रस्तारपंक्तिः। ४ पथ्या बृहती। ६ प्रस्तारपंक्तिः। २, ३, ५, ७-१० अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्॥
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