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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 1

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या पुरउष्णिक् सूक्तम् - अमृतप्रदाता सूक्त

    स घा॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता सा॑विषद॒मृता॑नि॒ भूरि॑। उ॒भे सु॑ष्टु॒ती सु॒गात॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । घ॒ । न॒: । दे॒व: । स॒वि॒ता । सा॒वि॒ष॒त् । अ॒मृता॑नि । भूरि॑ । उ॒भे इति॑ । सु॒स्तु॒ती इति॑ सु॒ऽस्तु॒ती । सु॒ऽगात॑वे ॥१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स घा नो देवः सविता साविषदमृतानि भूरि। उभे सुष्टुती सुगातवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । घ । न: । देव: । सविता । साविषत् । अमृतानि । भूरि । उभे इति । सुस्तुती इति सुऽस्तुती । सुऽगातवे ॥१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (स घ) वह परमात्मा ही (देवः) एक ऐसा है जो (सविता) सब का उत्पादक है। वही (भूरि) नाना, बहुत से (अमृतानि) अमृतमय मोक्ष के साधन, दीर्घ जीवन और अन्न (नः साविषत्) हमें देता है। (उभे) दोनों प्रकार की (सु-स्तुती) उत्तम स्तुतियां (सुगातवे) उसी के उत्तम गुणगान के लिये हैं। दोनों ‘सुस्तुति’ अर्थात् सामगायन ‘स्तुत’ , और मन्त्रपाठ ‘शस्त्र’ हैं। प्रगीतमन्त्रसाध्या स्तुतिः स्तोत्रम्। अप्रगीतमन्त्रसाध्या स्तुतिः शस्त्रम्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। सविता देवता। त्रिपदा पिपीलिकामध्या साम्नी जगती २- ३ पिपीलिका मध्या परोष्णिक्। तृचं सूक्तम् ॥

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