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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 107/ मन्त्र 4
सूक्त - शन्ताति
देवता - विश्वजित्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विश्वजित् सूक्त
कल्या॑णि सर्व॒विदे॑ मा॒ परि॑ देहि। सर्व॑विद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठकल्या॑णि । स॒र्व॒ऽविदे॑ । मा॒ । परि॑ । दे॒हि॒ । सर्व॑ऽवित् । द्वि॒ऽपात् । च॒ । सर्व॑म् । न॒: । रक्ष॑ । चतु॑:ऽपात् । यत् । च॒ । न॒: । स्वम् ॥१०७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
कल्याणि सर्वविदे मा परि देहि। सर्वविद्द्विपाच्च सर्वं नो रक्ष चतुष्पाद्यच्च नः स्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठकल्याणि । सर्वऽविदे । मा । परि । देहि । सर्वऽवित् । द्विऽपात् । च । सर्वम् । न: । रक्ष । चतु:ऽपात् । यत् । च । न: । स्वम् ॥१०७.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 107; मन्त्र » 4
विषय - विश्वविजयिनी राजशक्ति का वर्णन।
भावार्थ -
हे (कल्याणि) देश के हित, कल्याण, सुख की सामग्री को उपस्थित करने वाली परिषद् ! तू (मा) मुझको (सर्वविदे परिदेहि) सब वस्तुओं को जानने वाले के अधीन कर। हे (सर्वविद्) सर्वज्ञ परिषद् ! तू (नः) हमारे (द्विपात् चतुष्पात् च यत् च नः स्वम् सर्व रक्ष) दोपायों चोपायों और भी जो हमारा धन है उस सबकी रक्षा कर। राज्य के चार विभाग होने आवश्यक हैं (१) विश्वजित्, देशों के विजय करने वाला विभाग, (२) त्रायमाणा, विजित देशों की करने वाला विभाग, (३) कल्याणी, नगरों और देशों की प्रजा के सुख आराम, जीवन सुधार का प्रबन्ध करने वाला विभाग (४) सर्ववित् राष्ट्र, परराष्ट्र आदि सबके विषय में ज्ञान प्राप्त करने वाला और तदनुसार अपने अन्य विभागों को उन उनके विषयक बातों की जानकारी रखने वाला। विजय करने वाला विभाग जिस देश को विजय करे उसे रक्षाकारी विभाग के हाथ देदे। और वह रक्षाकारी विभाग भी विजेता विभाग की आज्ञा से ही उसकी रक्षा करे और वह कल्याणी परिषद् को सौंपदे, कल्याणी परिषद् कल्याण करने के लिये सर्ववित् परिषद् के अधीन राष्ट्र को वहां के सब पदार्थों का ज्ञान करके राष्ट्र में व्यापार और कारीगरी शुरू करावे।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शंतातिर्ऋषिः। विश्वजित् देवता। अनुष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
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