अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 4
ऋषिः - शन्ताति
देवता - विश्वजित्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - विश्वजित् सूक्त
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कल्या॑णि सर्व॒विदे॑ मा॒ परि॑ देहि। सर्व॑विद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥
स्वर सहित पद पाठकल्या॑णि । स॒र्व॒ऽविदे॑ । मा॒ । परि॑ । दे॒हि॒ । सर्व॑ऽवित् । द्वि॒ऽपात् । च॒ । सर्व॑म् । न॒: । रक्ष॑ । चतु॑:ऽपात् । यत् । च॒ । न॒: । स्वम् ॥१०७.४॥
स्वर रहित मन्त्र
कल्याणि सर्वविदे मा परि देहि। सर्वविद्द्विपाच्च सर्वं नो रक्ष चतुष्पाद्यच्च नः स्वम् ॥
स्वर रहित पद पाठकल्याणि । सर्वऽविदे । मा । परि । देहि । सर्वऽवित् । द्विऽपात् । च । सर्वम् । न: । रक्ष । चतु:ऽपात् । यत् । च । न: । स्वम् ॥१०७.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब सुख की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(कल्याणि) हे कल्याणी, मङ्गलकारिणी ! [शाला वा ओषधि विशेष] (सर्वविदे) सर्वज्ञ परमेश्वर को (मा) मुझे (परिदेहि) सौंप (सर्वविद्) हे सर्वज्ञ परमेश्वर ! (नः) हमारे (सर्वम्) सब (द्विपात्) दो पाये (च) और (चतुष्पात्) चौपाये (च) और (नः) हमारे (यत् स्वम्) सब कुछ धन की (रक्ष) रक्षा कर ॥४॥
भावार्थ
मन्त्र एक और दो के समान ॥४॥
टिप्पणी
४−(सर्वविदे) विद् ज्ञाने−क्विप्। सर्वज्ञाय परमेश्वराय। (सर्ववित्) हे सर्वज्ञ ॥अन्यत्पूर्ववत्॥
विषय
सर्वविदे
पदार्थ
१.हे (कल्याणि) = शुभ-साधिके यज्ञादि क्रिये! (मा) = मुझे (सर्वविदे परिदेहि) = सर्वज्ञ प्रभु के प्रति अर्पित कर । यज्ञादि शुभ कर्मों को करते हुए हम प्रभु को प्राप्त करें। २. हे (सर्ववित्) = सर्वज्ञ प्रभो! आप (नः) = हमारे (सर्वम्) = सब (द्विपात्) = दो पाँववाले मनुष्यादि को (च) = तथा (चतुष्पात्) = चार पाँववाले गौ आदि पशुओं को (रक्ष) = रक्षित कीजिए, (च) = और (यत् नः स्वम्) = जो हमारा धन है, उसका भी रक्षण कीजिए।
भावार्थ
हम यज्ञादि शुभ कर्मों को करते हुए प्रभु को प्राप्त करें। प्रभु हमारे रक्षक हों।
विशेष
इस सूक्त का सामान्य भाव यह है कि १. प्रभु हमें ऐसा घर प्राप्त कराएँ जो हमारा रक्षण करनेवाला हो, २. इस घर में सुरक्षित रहते हुए हम विश्वजित् प्रभु का स्मरण करें, ३. प्रभु हमें याग आदि शुभ क्रियाओं में प्रेरित करें, ४. ये शुभ क्रियाएँ हमें प्रभु को प्राप्त करानेवाली हों।
प्रभु को प्राप्त करनेवाला और परिणामतः आनन्दमय जीवनवाला यह 'शौनक' बनता है [शुनं सुखम्]। शौनक ही अगले सूक्त का ऋषि है। यह मेधा के लिए प्रार्थना करता है।
भाषार्थ
(कल्याणि) हे परमेश्वरीय कल्याणकारिणी शक्ति ! (सर्वविदे) सर्ववेत्ता परमेश्वर के प्रति (मा) मुझे (परिदेहि) प्रदान कर सुपुर्द कर, समर्पित कर। (सर्वविद्) हे सर्ववेत्ता परमेश्वर ! (यत्) जो (नः) हमारे (द्विपात्) दोपाय (च) और (चतुष्पात्) चौपाए हैं उन (सर्वम्) सब की (रक्ष) रक्षा कर (च) और (नः) हमारी (स्वम्) धन-सम्पत् की रक्षा कर।
टिप्पणी
[चार मन्त्रों में परमेश्वर को विश्वजित् तथा सर्वविद द्वारा निर्दिष्ट किया है, और उसकी शक्तियों को त्रायमाण तथा कल्याणी पदों द्वारा निर्दिष्ट किया है। परमेश्वर की त्रायमाणा शक्ति द्वारा परिपालित हो कर मनुष्य को चाहिये कि वह अपने आप को परमेश्वर की कल्याणी शक्ति के प्रति समर्पित कर दे, और कल्याण मार्ग पर चलता हुआ सर्वविद् परमेश्वर के प्रति अपने आप को समर्पित कर दे। इन मन्त्रों में आध्यात्मिक और गृहस्थ जीवनों में समन्वय दर्शाया है, अतः वेदानुसार परमेश्वर की प्राप्ति के लिये गृहस्थत्याग आवश्यक नहीं। गृहस्थ में रहता हुआ मनुष्य यदि गृहस्थ के नियमों के अनुसार गृहस्थ जीवन व्यतीत करता है, तो वह गृहस्थ में ही परमेश्वर को प्राप्त हो जाता है।]
विषय
विश्वविजयिनी राजशक्ति का वर्णन।
भावार्थ
हे (कल्याणि) देश के हित, कल्याण, सुख की सामग्री को उपस्थित करने वाली परिषद् ! तू (मा) मुझको (सर्वविदे परिदेहि) सब वस्तुओं को जानने वाले के अधीन कर। हे (सर्वविद्) सर्वज्ञ परिषद् ! तू (नः) हमारे (द्विपात् चतुष्पात् च यत् च नः स्वम् सर्व रक्ष) दोपायों चोपायों और भी जो हमारा धन है उस सबकी रक्षा कर। राज्य के चार विभाग होने आवश्यक हैं (१) विश्वजित्, देशों के विजय करने वाला विभाग, (२) त्रायमाणा, विजित देशों की करने वाला विभाग, (३) कल्याणी, नगरों और देशों की प्रजा के सुख आराम, जीवन सुधार का प्रबन्ध करने वाला विभाग (४) सर्ववित् राष्ट्र, परराष्ट्र आदि सबके विषय में ज्ञान प्राप्त करने वाला और तदनुसार अपने अन्य विभागों को उन उनके विषयक बातों की जानकारी रखने वाला। विजय करने वाला विभाग जिस देश को विजय करे उसे रक्षाकारी विभाग के हाथ देदे। और वह रक्षाकारी विभाग भी विजेता विभाग की आज्ञा से ही उसकी रक्षा करे और वह कल्याणी परिषद् को सौंपदे, कल्याणी परिषद् कल्याण करने के लिये सर्ववित् परिषद् के अधीन राष्ट्र को वहां के सब पदार्थों का ज्ञान करके राष्ट्र में व्यापार और कारीगरी शुरू करावे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंतातिर्ऋषिः। विश्वजित् देवता। अनुष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Of Safety and Security
Meaning
O Spirit of good, universal service and welfare, Kalyani, dedicate me to Sarvavit, the divine spirit of universality. O Sarvavit, spirit of universal love and service, protect and promote all our people, all our animals, and all that is our wealth and values, power and excellence in the world.
Translation
O virtuous Power, entrust me to Omniscient. O Omniscient, may you guard all our bipeds, and quadrupeds which are our wealth.
Translation
Let this Kalyani hand over me to sarvavid, the Omniscient and may this Omniscient Lord save all our bipeds and quadrupeds and whatever is thrown as our own vitality.
Translation
O benevolent power of God, entrust me to the All-knowing God. O All knowing God, guard all our men, guard all our quadrupeds, and our wealth!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(सर्वविदे) विद् ज्ञाने−क्विप्। सर्वज्ञाय परमेश्वराय। (सर्ववित्) हे सर्वज्ञ ॥अन्यत्पूर्ववत्॥
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