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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 3
सूक्त - यम
देवता - सुधन्वा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायुप्राप्ति सूक्त
इ॒दं तृ॒तीयं॒ सव॑नं कवी॒नामृ॒तेन॒ ये च॑म॒समैर॑यन्त। ते सौ॑धन्व॒नाः स्वरानशा॒नाः स्विष्टिं नो अ॒भि वस्यो॑ नयन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । तृ॒तीय॑म् । सव॑नम् । क॒वी॒नाम् । ऋ॒तेन॑ । ये । च॒म॒सम् । ऐर॑यन्त । ते । सौ॒ध॒न्व॒ना: । स्व᳡: । आ॒न॒शा॒ना: । सुऽइ॑ष्टिम् । न॒: । अ॒भि । वस्य॑: । न॒य॒न्तु॒॥४७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं तृतीयं सवनं कवीनामृतेन ये चमसमैरयन्त। ते सौधन्वनाः स्वरानशानाः स्विष्टिं नो अभि वस्यो नयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । तृतीयम् । सवनम् । कवीनाम् । ऋतेन । ये । चमसम् । ऐरयन्त । ते । सौधन्वना: । स्व: । आनशाना: । सुऽइष्टिम् । न: । अभि । वस्य: । नयन्तु॥४७.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 3
विषय - दीर्घायु, सुखी जीवन और परम सुख की प्रार्थना।
भावार्थ -
(इदं तृतीयं सवनम्) यह तीसरा सवन अर्थात् आदित्यब्रह्मचर्य (कवीनाम्) कान्तदर्शी, मेधावी विद्वान् पुरुषों का ही है, (ये) जो (ऋतेन) सत्य और ब्रह्मज्ञान के बल से (चमसम्) अपने मस्तिष्क को प्रेरित करते हैं अर्थात् जो सत्य, ज्ञान और तपके बल से अपने मस्तिष्क को तीसरे दर्जे के ब्रह्मचर्य की पूर्ति के लिये प्रेरित करते हैं (ते) वे (सौधन्वनाः) धनुर्धरों के समान उत्तम सत्य रूप से ओंकार रूप औपनिषद धनुष को धारण करते हुए (स्वः आनशानाः) मोक्ष सुख या प्रकाशमय ब्रह्म का आनन्द लाभ करते हुए (नः) हमारे (स्विष्टिम्) उत्तम ब्रह्मचर्य-यज्ञ के प्रति (वस्यः) उत्तम श्रेष्ठ फल (अभि नयन्तु) प्राप्त करावें।
टिप्पणी -
अध्यात्म में चमसपात्रों का निर्णय इस प्रकार है। प्राणापानाभ्यामेवोपांश्वन्तर्यामौ निरमिमीत। व्यानादुपांशुसवनं वाच ऐन्द्रवायवं। पक्षक्रतुभ्यां मैत्रावरुणं, श्रोत्रादाश्विनं, चक्षुषः शुक्रामन्थिनो, आत्मन अग्रायणं अङ्गेभ्यः उथ्यं, आयुषो ध्रुवम्। प्रतिष्ठाया ऋतुपाने। तै० १। ५। १। २। यहां चमस = समस्त आयु है। यज्ञ में चमसस्थित पात्र के सोम को चार भागों में विभाग किया जाता है। जिसका अभिप्राय जीवन को चार भागों में बांटना है। इस प्रकार यज्ञपरक अर्थ सङ्गत होता है, तीन सवनों की व्याख्या अध्यात्म साधना में—जीवन के तीन भाग हैं। प्रथम सवन २४ वर्ष का ब्रह्मचर्य द्वितीय सवन ४४ वर्ष का ब्रह्मचर्य, और तृतीयसवन ४८ वर्ष का ब्रह्मचर्य। (देखो छान्दो० उप० ३। १६)।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अंगिरा ऋषिः। १ अग्निर्देवता। २ विश्वेदेवाः। ३ सुधन्वा देवता। १-३ त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
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